पृष्ठ:हिंदी साहित्य का आदिकाल.pdf/४४

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द्वितीय ज्याल्यान धर्मायन (ध्रमाइन) कायस्थ ने इस कवि को दरबार के मेद बता दिए थे। इन बातों से जान पड़ता है कि परम्परया यह बात विदित थी कि शहानुबुद्दीन के दरबार में हिन्दू भाट सम्मान पाते थे। सभवतः पंडित रामचन्द्र शुक्ल जिसे मधुकर भट्ट कहते है, वे माधो ही हो। यह बात संभव जान पड़ती है। क्योंकि महमूद ने बहुत थोड़ा पहले ही गजनी के ब्राह्मण राजाओ से राज्य छीना था और वहाँ तब भी बहुत-से हिन्दू थे और कुछ पुराने बदी जन भी उसके अाश्रय में रह गए हों तो श्राश्चर्य करने की बात नहीं है। जो हो, इससे केवल इतना ही सिद्ध होता है कि सुदूर गजनी मे भी कुछ भाषा-कवि वर्तमान थे, परन्तु उनको कविता कैसी होती थी, भाषा कैसी थी, यह आनने का कोई उपाय नहीं है। एक बात और भी विचारणीय है- ___शिवसिंहसरोज (पृ० ३६०) मे बताया गया है कि केदार कवि अलाउद्दीन गोरी के दरबार मे रहता था। 'गोर' गजनी के उत्तर-पश्चिम मे एक पहाडी इलाका है। यहाँ पहले हिन्दुओं की बस्ती भी थी और राज्य भी था। सुलतान महमूद के काल मे ये लोग मुसलमान होने लगे। महमूद के बाद भी गजनी के अधिकार मे ही गोर का इलाका था। सुलतान बहराम ने गोर के सार कुतबुद्दीन और उसके माई सईफुद्दीन को क्रूरतापूर्वक मरवा डाला। इनका एक और भाई अलाउद्दीन गोरी या। उसने जब इस क्रूरतापूर्ण हत्या की बात सुनी तब बदला लेने का निश्चय किया। बहराम बहुत बड़ी गजसेना के साथ गोर पर चढ़ श्राया। अलाउद्दीन ने उसे हरा दिया और फिर गजनी पर क्रोधपूर्वक अाक्रमण करके उसे जलाकर छारखार कर दिया | इस क्रूर अग्निकाण्ड के कारण उसे 'जहाँ सोज' कहकर स्मरण किया गया है। 'जहाँ सोज' अर्थात् 'जगद्दाहक'। इसी का भतीजा मुहम्मद गोरी था जो अपने भाई गयासुद्दीन की ओर से राज्य करता था। यह बहुत महत्त्वाकाक्षी था और इसने केवल गजनी जीतकर ही सन्तोप नहीं किया, बल्कि बहुत भारतवर्ष मे धावे-पर-धाचे बोल दिए। इसी का दूसरा नाम शहाबुद्दीन (धर्म का ज्वलन्त नक्षत्र) था। अलाउद्दीन के थोड़ा पहले हिन्दुओं का राज्य था और उसका वश भी सभवतः एकाध पुश्त पहले ही मुसलमान हुश्रा था। तुर्की की तरह वे पुस्तैनी मुसलमान नहीं थे। इसलिये यह संभव जान पड़ता है कि माधव और केदार भट्ट अलाउद्दीन के दरबार मे रहे हो और शहाबुद्दीन ने भी उन्हें अपना विश्वासपात्र समझा हो। बाद मे जयचन्द्र के पतन के बाद लोगों मे यह धारणा बन गई हो कि ये लोग जयचन्द्र के कवि होंगे, क्योंकि राजपुताने में इस प्रकार का विश्वास किया जाने लगा था कि जयचन्द्र मुहम्मद गोरी का मित्र था। रासो मे तो जयचन्द्र की मुसलमानी सेना का भी उल्लेख है। ___ भट्ट केदार और भट्ट मधुकर गोरी-दरवार के कवि हों या जयचन्द्र के दरबार के, उनकी रचनाओं का कुछ पता नही चलता और इसलिये उनके सम्बन्ध मे कुछ कहना सभव नही है । इतना अवश्य है कि काशी-कन्नौजी के दरबार मे अन्तिम दिनो मे भाषा-कविता का मान होने लगा था। प्राकृत पैगल मे किसी या किन्ही अशात कवियों की रचनाएँ उदाहरण- रूप मे उद्धृत हैं जो स्पष्ट ही काशीश्वर (सभवतः जयचन्द्र) की महिमा बखानने के लिये लिखी गई थीं। कविताओं मे बड़ी ही प्रौढ भापा का नमूना मिलता है। दो-एक उदाहरण दिए जा रहे है--