पृष्ठ:हिंदी साहित्य का आदिकाल.pdf/७०

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तृतीय व्याख्यान यद्यपि दण्डी ने भामह की बात को इस तर्क से कार दिया है तथापि भामह की बातों मे एक प्रकार की सच्चाई है | भामह ने अपने समय मे सस्कृत-गद्य मे लिखी जानेवाली कथाओं के साथ प्राकृत और अपभ्रश मे लिखी जानेवाली कथाओं को भी देखा था। उनसे बहुत पूर्व 'वृहत्कथा' ख्यात हो चुकी थी। संस्कृत-कथा के तीन प्राचीन और प्रौढ लेखक- दण्डी, सुबाहु और बाणभट्ट-अपनी कथावस्तु के लिए वृहत्कथा के ऋणी है। काव्यालंकार के लेखक रुद्रट (लगभग नवी शताब्दी) ने लिखा है कि केवल सस्कृत मे निबद्ध कथानो के लिये गद्य मे लिखने का बधन है, परन्तु अन्य मापाश्री मे लिखी जानेवाली रचनाएँ पद्य मे भी लिखी जा सकती हैं। यहाँ 'अन्य भाषाओं से प्राकृत और अपभ्रश की ओर इशारा है। नमिसाधु ने तो अपनी टीका मे स्पष्ट शब्दों मे कहा है कि 'अन्येन प्राकृतादिभापान्तरेण तु अगयेन गाथामिः प्रभूनं कुर्यात् । अर्थात् 'दूसरी भाषाओं का अर्थ है-प्राकृत आदि भाषाएँ, उनमे अगद्य में अर्थात् गाथाश्री मे कथा लिखी जानी चाहिये, इस प्रकार भामह और रुद्रट के बताए हुए कथालक्षणों से स्पष्ट होता है कि 'कथा' संस्कृत से भिन्न भाषाओं मे पद्य मे मी लिखी जाती थी। प्राकृत और अपभ्रंश मे उन दिनों निश्चय ही पद्य मे लिखा हुआ ऐसा साहित्य वर्तमान था जिन्हें 'कथा' कहा जाता था। प्राकृत मे लिखी कथाएँ पद्मबद्ध भी होती थीं और 'गद्य' मे भी लिखी जाती थीं। वृहत्कथा के सम्बन्ध मे कुछ निश्चित् रूप मे कहना कठिन है कि यह गद्य में लिखी गई थी या पद्य मे, परन्तु 'वसुदेवहिण्डि' नामक गद्य-निबद्ध प्राचीन प्राकृत कथा उपलब्ध हुई है जो यह सूचित करने के लिये पर्याप्त है कि प्राकृत मे गद्य बद्ध कथाएँ अवश्य लिखी जाती थी। मौभाग्यवश कुछ प्राकृत पद्य-बद्ध कथाएँ भी उपलब्ध हुई हैं और प्रकाशित भी हुई है। प्राकृत मे लिखी हुई सबसे पुरानी कथा तो गुनाढ्य की वृहत्कथा ही है। भारतवर्ष का यह दुर्भाग्य ही कहा जाना चाहिए कि यह अमूल्य निधि अाज अपने मूलरूप मे प्राप्त नहीं है। सन् ईसवी की आठवीं-नवीं शताब्दी के साहित्य से पता चलता है कि उस समय तक यह कथा प्राप्य थी। यहाँ तक कि लगभग, सन् ८७५ ई० मे कम्बोडिया की एक सस्कृत-प्रशस्ति मे भी गुणादय और इनकी वृहत्कथा की चर्चा आई है। यह ग्रन्थ पैशाची प्राकृत मे लिखा गया था। इसके निर्माण की कहानी बढी मनोरजक है। गुणाढ्य पडित महाराज सातवाहन के सभापण्डित थे। ये महाराज सातवाहन भी उदयन, विक्रमादित्य (साहसास) की भाँति दर्जनो निजधरी कहानियों के नायक हैं। उदयन और विक्रमादित्य की भॉति ये भी ऐतिहासिक पुरुष थे। सातवाहन राजाओं ने दीर्घकाल तक दक्षिण में राज्य क्रिया था। सिक्कों पर उनके 'साड', 'सात' आदि नाम प्राप्त हुए हैं। पडितों ने अनुमान किया है कि हाल' वस्तुतः 'साई' शब्द का ही प्राकृत रूप है। वर्ण- परिवर्तन के आधार पर निश्चित किया हुआ यह सिद्धान्त सही हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है। परन्तु, इतना सत्य है कि हाल' प्राकृत-साहित्य के उसी प्रकार पुरस्कर्ता थे जिस प्रकार विक्रमादित्य संस्कृत-साहित्य के। ब्राहाण-साहित्य में अपने प्राकृत-प्रेम के कारण इन्हें कई बार उपहास का पात्र बनना पड़ा है। हम अभी जिस