पृष्ठ:हिंदी साहित्य का आदिकाल.pdf/७२

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तृतीय व्याख्यान गुणान्य पंडित ने जो सुना तो व्यथित होकर पुस्तक जला देने की ठानी। शिष्यों के आग्रह पर उन्होंने एक बार कथा सुना देने का अनुग्रह किया। आग जला दी गई, पडित आसन बाँधकर बैठ गए, एक-एक पन्ना पढ़कर श्राग मे जला दिया जाने लगा। कथा इतनी मधुर और मोहक थी कि पशु-पक्षी, भृग और व्याघ्र खाना-पीना छोड़कर, वैर बिसारकार सुनने लगे। उनके मास सूख गए। जब राजा की रन्धनशाला मे ऐसे ही पशुओं का मास पहुँचा तो शुष्क मांस के भक्षण से राजा के पेट मे दर्द हुआ। वैद्य ने नाही देखकर रोग का निदान किया, वधिको से कैफियत तलब की गई और इस प्रकार अशात पंडित के कथावाचक की मनोहारिता राजा के कानों मे पहुँची । परन्तु जयतक श्राश्चर्य चकित राजा वहाँ उपस्थित होते हैं तबतक ग्रन्थ के सात भागों मे से छ: भाग जल चुके थे। राजा की प्रार्थना पर सिर्फ एक ही भाग बच सका। उसी बचे भाग की कथा हमारे पास मूलरूप मे तो नहीं आ सकी; परन्तु संस्कृत-अनुवाद के रूप मे आज भी उपलब्ध होती है । बुद्धस्वामी के 'धृहत्कथाश्लोकसंग्रह', नेमेन्द्र की 'बृहत्कथामंजरी' और सोमदेव के 'कथासरित्सागर' में वृहत्कथा के उस अवशिष्ट अंश की कहानियों संग्रहीत हैं।। इनमै पहला ग्रन्थ नेपाल के और बाकी कश्मीर केपंडितों रचना की है। यह तो नहीं पता चलता कि गुणाढ्य ने मूल कहानी गध में लिखी थी या पद्य में। श्लोकसंग्रह से जान पड़ता है कि वह पद्य मे ही लिखी गई होगी, पर कथा की परवर्ती परिभाषाओं को देखकर बहुतेरे पठित उसे गद्य मे लिखी बताते है । वैसे तो यह विवाह तबतक चलता रहेगा जबतक सौभाग्यवश मूलमन्य की कोई प्रति न मिल जाय । किन्तु मैं अपना यह विश्वास प्रकट कर देना चाहता हूँ कि मूलकथा पद्यबद्ध थी और वहीं से प्राकृत-भाषा या लोकभाषा मे पद्यवद्ध कथाओं के लिखने की परम्परा शुरू होती है। ____ रुद्रट ने कथा या महाकथा के लिये जो लक्षण बताए है वे वस्तुतः उस समय की प्राकृत या अपभ्रंश कथाओं को देखकर ही लिखे गए होंगे। साधारणतः लक्ष्य को देखकर ही लक्षण बनाने का नियम है । रुद्रट के अनुसार कथा के प्रारम्भ मे देवता या गुरु की वदना होनी चाहिए, फिर ग्रन्थकार का अपना और अपने कुल का परिचय दिया जाना चाहिए और उसके बाद कथा लिखने का उद्देश्य वर्णन करना चाहिए । शुरू मे एक कथान्तर होना चाहिए जो प्रधान कहानी का प्रस्ताव कर सके । सरस वर्णनों से संजीवित कन्याप्राप्ति ही इसका प्रधान प्रतिपाद्य होना चाहिए ।' रुद्रट से कुछ पूर्व की लिखी १. श्लोकमहाकथायामिण्टान् देवान् गुरून्नमस्कृस्य । संक्षेपेण निर्ज कुलमभिदध्यास्वं च कवया ॥ सानुप्रासेन ततो सध्वरेण गयेन । रचयेत् कथाशरीरं पुरेव पुरवर्णकप्रमृतीन् ॥ आदौ कथान्तरं वा तस्यां न्यस्येत् प्रपबितं सम्यक् । जघु तावत् सन्धान प्रक्रान्तकथावताराय ॥ कन्यालामफलां वा सम्यग् विन्यस्य सकलजारम् । इति संस्कृतेन कुर्यात् कथामगधेन चान्येन ॥ -रुद्रट का काव्यातहार, १६-२०-२३