पृष्ठ:हिंदी साहित्य का आदिकाल.pdf/७८

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तृतीय व्याख्यान प्रक्षेप हुश्रा है। यदि हम इस संकेत से रासो के मूल रूप का कुछ आभास पा सके तो यह मामूली लाभ नहीं होगा। इतनी देर तक इसी लाभ की आशा से मै श्रापको साहित्यिक इतिहास के खंडहरों मे भटकाता रहा। देखा जाए। शुरू में (प्रथम समय, छन्द ग्यारह और आगे) चन्द की स्त्री शका करती है। यह बात एकाएक आ जाती है, इसके पहले चन्द की स्त्री का कहीं उल्लेख नहीं है। ग्यारहवें छन्द के पहले कवि ने विनयवश कह दिया है कि हम अपने पूर्ववत्ती महाकवियों का उच्छिष्ट कथन कर रहा है। यहीं पर चन्द की स्त्री शंका करती है कि यह कैसे हो सकता है ? प्रसंग से जान पडता है कि कथा चन्द और उसकी पत्नी के संवादरूप मे चल रही है। इसके पहले उसका कोई आभास नहीं है, फिर काफी दूर जाकर प्रश्नोत्तर का क्रम फिर शुरू होता है। वहॉ स्पष्ट शब्दों मे उल्लेख है, कि रात्रि के समय रस में आकर कविपत्नी ने पृथ्वीराज की कीनि-कथा श्रादि से अन्त तक वर्णन करने का अनुरोध किया। बहुत कुछ यह 'लीलावती' के कवि कौतूहल की पत्नी के समान ही है। लगता है कि इस गाथा को ग्रंथ के शुरू मे आना चाहिये था। गाथा इस प्रकार है- समयं इक निसि चंदं । वाम वत्त बदि रस पाई ।। दिल्ली ईस गुनेयं । कित्ती कहो आदि अंताई ।। फिर अचानक पाँचवें समय मे सवाद कवि और कविपली के बीच न होकर शुक और शुकी के बीच चलने लगता है। शुकी कह उठती है कि हे शुक, सॅमलो। हे प्राणपति, बताओ कि भोला भीमंग के साथ पृथ्वीराज का वैर कैसे हुआ ?- सुकी कहै सुक संभरौ कही कथा पतिप्रान। पृथु मोरा भीमंग पहु, किय हुअ वैर वितान ॥ यहाँ अचानक ही शुक का श्रा आना कुछ विचित्र-सा लगता है। फिर कवि और कवि- पली कमी नहीं पाते। रासोसार के लेखको ने शुक को कवि चन्द और शुकी को उसकी पत्नी मान लिया है। पता नहीं, किस प्रकार यह बात उनके मन मे आई है। शायद उनके पास कोई ऐसी परम्परा का प्रमाण हो । अन्य से यह नहीं पता चलता कि शुक कवि चंद है और शुकी कवि-पत्नी। मुझे तो यह भी संदेह होने लगा है कि 'समयं इक निसि चंद'- वाली गाथा कुछ विकृत रूप में श्राई है और इसी गाथा मे शुक और शुकी की चर्चा होनी चाहिए। जो हो, उसके आगे के दोहे में स्पष्ट है कि वार्तालाप कवि और उसकी पली मे चल रहा है । इसलिए, इस अनुमान को दूर तक घसीटना अच्छा नहीं जान पड़ता । अस्तु । इसके बाद बारहवे समय मे पहले एक छन्द मे तिथि-वार बता लेने के बाद शुकी इछिनी के विवाह के विषय मे प्रश्न करती है- जंपि सुकी शुक पेम करि आदि अन्त जो बत्त । इंछिनि पिथ्यह व्याहविधि, सुप्ष सुनते गत ॥ वैसे तो रासो में पृथ्वीराज के नौ विवाहों का उल्लेख है, पर तीन विवाह ऐसे हैं, जिन्हें कवि ने विशेष रस लेकर लिखा है। ये तीन विवाह हैं- इचिनि, शशिव्रता और संयोगिता नामक राजकुमारियों के साथ पृथ्वीराज के विवाह । तीनों में ही शुकी ने शुक से प्रश्न