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हिन्दी-साहित्य का आदिकाल

७६ हिन्दी साहित्य का आदिकाने विक्षुब्ध शृंगार-सागर की चटुल वीचिगें तरंगित हो उठी हैं। वे मद को भी मदमत्त बना देती थी, श्रानन्द को भी आनन्दित कर देती थीं, नृत्य को भी नचा देती थी और उत्सव को भी उत्सुक बना देती थीं।' हर्षचरित के चतुर्थ उच्छवास मे एक ऐसा ही मनोरम वर्णान है। मैं उसका अनुवाद नहीं दे रहा हूँ. केवल उसके वक्तव्य वस्तु और स्थापन-पद्धति की ओर इशारा करने के लिये थोड़ी-सी बानगी दे रहा हूँ। इस प्रकार कोई अवसर मिला नहीं कि कवि की कल्पना उत्तेजित हुई नहीं। फिर कहाँ गया इतिहास और कहाँ गई तथ्यों की वह दुनिया, जो बार-बार ठोकर मारकर कवि-कल्पना की स्वच्छन्द उड़ान में बाधा पहुंचाती रहती है। कोई आश्चर्य नहीं कि वाण के समान कल्पकवि ने जिस काव्यरूप को छू दिया, वह वहीं अपनी चरम सीमा पर पहुंचकर समाप्त हो गया। किसकी हिम्मत है कि फिर से उस काव्यरूप को छूकर उसी गरिमा तक पहुंचा सके। यदि आगे चलकर किसी ने हिम्मत की भी तो वह रसिकों का हृदय नहीं जीत सका। बाणभट्ट ने कथा और आख्यायिका की गद्यवाली शैली को अपने चरम उत्कर्ष तक पहुँचाकर छोड़ दिया। कोशिश करनेवालों ने कोशिश की अवश्य, पर 'न हुआ पर न हुआ मीर का इकबाल नसीव । जौक यारों ने बड़ा जोर गजल मे मारा ।' फिर तो गद्य को छोड़ ही दिया गया। लिया भी गया तो पद्मबहुल करके। आगे • चलकर चम्पुओं की शैली अधिक लोकप्रिय हो गई। पद्यों में संस्कृत-भापा मॅज गई थी, उसका सहारा लेकर कुछ कहना संभव था; पर गद्य को तो बाणभट्ट ने जिस ऊँचाई पर उठा दिया, उस तक पहुँचना असंभव हो गया। प्रकृत प्रसंग ऐतिहासिक काव्यों का है। ऐतिहासिक व्यक्तियों के नाम पर काव्य लिखने की प्रथा बाद मे खूब चली। इन्हीं दिनों ईरान के साहित्य में भी इस प्रथा का प्रवेश हुश्रा, उत्तर-पश्चिम सीमान्त से बहुत-सी जातियों का प्रवेश होता रहा। वे राज्य स्थापन करने मे मी समर्थ हुई। पता नहीं कि उन जातियों की स्वदेशी प्रथा की क्या-क्या बातें इस देश मे चली । साहित्य में नये-नये काव्यरूपों का प्रवेश इस काल में हुआ अवश्य । सम्भवतः, ऐतिहासिक पुरुषों के नाम पर कान्य लिखने या लिखाने की चलन भी उनके संसर्ग का फल हो। परन्तु, भारतीय कवियों ने ऐतिहासिक नाम-मर लिया, शैली उनकी वही पुरानी रही, जिसमे काव्य-निर्माण की ओर अधिक व्यान था, विवरण-संग्रह की अोर कम, कल्पना-विलास का अधिक मान था, तथ्य-निरूपण का कम संभावनानों की ओर अधिक रुचि थी, घटनाओं की ओर कम; उल्लसित श्रानंद की ओर अधिक झुकाव था, विलसित तथ्यावली की ओर कम । इस प्रकार इतिहास को कल्पना के हाथों परास्त होना पडा। ऐतिहासिक तथ्य इन काव्यों में कल्पना को उकसा देने के साधन मान लिए गए हैं। राजा का विवाह, शत्रुविजय, जलक्रीड़ा, शैल-बन-विहारः दोला-विलाम, नृत्य-गान-प्रीति---- ये सब बातें ही प्रमुख हो उठी हैं, क्रमशः इतिहास का अंश कम होता गया और संभावनात्रों का जोर बढ़ता गया। राजा के शत्रु होते है, युद्ध होता है। इतिहास की दृष्टि में एक युद्ध हुआ, और भी तो हो सकते थे। कवि संभावना को देखेगा। राजा का एकाधिक विवाह होते थे, यह तथ्य अनेक विवाहों की