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हिन्दी-साहित्य का आदिकाल

८. हिन्दी-साहित्य का आदिकाल परिचय दिया है। तथ्यात्मक विवरण को मोड़ने के साथ-ही-साथ वह छंदों को बदल देता है और पाठक के चित्त मे उत्पन्न हो तकनेवाली एक धृष्टता या मोनोटानी को कम कर देता है। सब मिलाकर कीर्तिलता अपने समय का बहुत ही सुन्दर चित्र उपस्थित करती है । वह इतिहास का कविहष्ट जीवन्त रूप है । उसमे न तो काव्य के प्रति पक्षपात है, न इतिहास की उपेक्षा, उसमे यथास्थान पाठक के चित्त मे करुणा, सहानुभूति, हास्य, औत्सुक्य और उत्कंठा जाग्रत् करने के विचित्र गुण हैं । इस पुस्तक मे उन कथानक-रूदियों का प्रयोग बहुत कम किया गया है, जो संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रश की रचनाओं में एक ही प्रकार के अभिप्राय ला देती हैं और तथ्यात्मक जगत् से कम संबंध रखकर कल्पना-विलास की ओर पाठक का मन मोड़ दिया करती हैं। पृथ्वीराजरासो और पद्मावत भी ऐतिहासिक व्यक्ति के नाम के साथ संबद्ध कान्य है। परन्तु, अन्यान्य ऐतिहासिक काव्यों की भॉति मूलतः इनमे भी ऐतिहासिक और निजधरी कथानों का मिश्रण रहा होगा। जैसा कि शुरू मे ही इशारा किया गया है, ऐतिहासिक चरित का लेखक संभावनाओं पर अधिक बल देता है। संभावनाओं पर बल देने का परिणाम यह हुआ है कि हमारे देश के साहित्य में कथानक को गति और घुमार देने के लिये कुछ ऐसे अभिप्राय बहुत दीर्घकाल से व्यवहृत होते आए हैं, जो बहुत थोड़ी दूर तक यथार्थ होते हैं और जो आगे चलकर कथानक-रूदि मे बदल गए हैं। इस विषय में ऐतिहासिक और निजधरी कथानों में विशेष भेद नहीं किया गया । केवल ऐसी बात का ध्यान रखा गया है कि सभावना क्या है। चित्तौर के राजा से सिंघल देश की राजपुत्री का विवाह हुश्रा था या नहीं, इस ऐतिहासिक तथ्य से कुछ लेना-देना नहीं है। हुआ हो तो बहुत अच्छी बात है, न हुआ हो तो होने की संभावना तो है ही। राजा से राजकुमारी का विवाह नहीं होगा तो किससे होगा ? शुक नामक पक्षी थोड़ा-बहुत मानव-वाणी का अनुकरण कर लेता है, और भी तो कर सकता था । जितनी शक्ति उसे प्राप्त है उससे अधिक की संभावना तो है ही। ऋषि के वरदान से वह शक्ति बढ़ सकती है, ऋषि के शाप से पतित गंधर्व यदि सुना हो गया हो तो पुनर्जन्म के संस्कार उसको कलामर्मज्ञ बना सकते है। जब ये संभावनाएं है तो क्यों न उसे सकलशास्त्र-विचक्षण सिद्ध कर दिया जाय। इस प्रकार संभावना-पक्ष पर जोर देने के कारण बहुत-सी कथानक-रूढ़ियाँ इस देश में चल पड़ी है। कुछ रूढ़ियों ये है- (१) कहानी कहनेवाला सुग्गा, (२) क. स्वप्न में प्रिय का दर्शन पाकर श्रासक्त होना, ख. चित्र में देखकर किसी पर मोहित हो जाना, ग. भिक्षुको या बंदियों के मुख से कीर्ति-वर्णन सुनकर प्रेमासक्त होना इत्यादि । (३) मुनि का शाप, (४) रूप-परिवर्तन, (५) लिंग-परिवर्तन, (६) परकाय-प्रवेश,