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हिन्दी-साहित्य का आदिकाल

४५ हिन्दी-साहित्य का आदिकाल यह सूचित करता है कि उस देश का सम्बन्ध किसी समय समुद्र से था। फिर भी उसका राजा विजय सिंह सिंहल के प्रथम राजा विजय सिंह से मिलता-जुलता है, जादूकुल में संभवतः यातुधानकुल की यादगार बची हुई है- उत्तर दिसि गढ़ गढ़नपति समुद शिषर इक दुग्ग। वह सुविजय सुरराजपति जादूकुलह अभमा ॥ इस प्रकार यह कहानी सोलहवीं शताब्दी के बाद की लिखी हुई है, और रासो में प्रक्षिप्त हुई है। यह ध्यान देने की बात है, कि जिन विवाहों के सम्बन्धों मे शुक और शुकी का संवाद मिलता है, उनसे यह मिन्न है, और यह भी ध्यान देने की बात है कि बीकानेर की फोर्ट लाइब्रेरी मे रासो की जो छोटी प्रति सुरक्षित बताई जाती है उसमें भी यह कहानी नहीं है । कथानक-रूढियों का विचार किए विना जो लोग रासो या पद्मावत की ऐतिहासिकता या अनैतिहासिकता की जाँच करने लगते हैं, वे भ्रान्त मार्ग का अनुसरण करते हैं। पद्मावती की कहानी इस बात की स्पष्ट सूचना देती है। शुक और शुकी के वार्तालापरूप मे प्रथम विवाह इंछिनी का है। दूसरा विवाह शशिनता का और तीसरा संयोगिता का है। तीनों विवाह सरस बने हैं और सुकविरचित जान पड़ते हैं। इंछिनी के विवाह के प्रसंग में तीन घटनाएँ उल्लेखयोग्य है जो शुक-शुकी के प्रश्नोत्तर के रूप मे आई हैं। पहली बात है भीम भोरंग के साथ पृथ्वीराज के वैर का कारण । भीम के सात चचेरे भाई जो उसके राज्य मे उपद्रव मचाने लगे थे, भीम के प्रताप से भयभीत होकर पृथ्वीराज की शरण श्राए, पर पृथ्वीराज के एक प्रिय सामन्त कन्ह से उनकी लड़ाई हो गई और वे मारे गए। इसपर भीमराव असन्तुष्ट हुना। दूसरी बात है भीम का इंछिनी से विवाह की इच्छा। इंछिनी की बड़ी बहन मदोदरी से उसका विवाह पहले ही हो चुका था। छोटी बहन को बड़ी पत्नी की सौत के रूप मे पाने का प्रयत्न अच्छा नहीं था। सलप अपनी छोटी लड़की को और उसका पुत्र जैत अपनी बहन को, इस प्रकार ब्याहने के विरुद्ध थे। उन्होंने भीम से रक्षा पाने के उद्देश्य से ही पृथ्वीराज की शरण ली। लडाइयों हुई राखों में होती ही रहती है--शहाबुद्दीन मी भीम के कहने से, किन्तु भीम को बरबाद कर देने की इच्छा के साथ चढ़ाया-वह भी रासो मे जब-तक श्रा ही धमकता है-और इछिनी से पृथ्वीराज का विवाह हुआ। श्रागे तीसरी घटना है बारात का वर्णन और इछिनी का नख-सिख (नख-सिख) वर्णन। इस विवाह में कवि ने , किसी प्रकार की कथानक-रूदि का आश्रय नहीं लिया है फिर भी और विवाहों से यह विशिष्ट है। इसमें इंछिनी का सौन्दर्य बहुत ही सुन्दर रूप में निखरकर प्रकट हुआ है, जो प्रधानतः कवि-समय के अनुसार ही है- नयन सुकज्जल रेष तप्षि निप्छल छवि कारिय । श्रवनन सहज कटाछ चित्त कर्षन नर नारीय । भुज मृनाल कर कमल उरज अंबुज कल्लिय कल । जंघ रंभ कटि सिंघगमन दुति हंस करी छल ।