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हिंदी-साहित्य का इतिहास

जायसी का सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ है 'पदमावत', जिसका निर्माण-काल कवि ने इस प्रकार दिया है––

सन नव सै सत्ताइस अहा। कथा अरंभ-बैन कवि कहा॥

इसका अर्थ होता है कि पदमावत की कथा के प्रारंभिक वचन (आरंभ बैन) कवि ने ९२७ हिजरी (सन् १५२० ई॰ के लगभग) में कहे थे। पर ग्रंथारंभ में कवि ने मसनवी की रूढि के अनुसार 'शाहेवक्त' शेरशाह की प्रशंसा की है––

शेरशाह दिल्ली सुलतानू। चारहु खंड तपै जस भानू॥
ओही छाज राज औ पाटू। सब राजै भुइँ धरा ललाटू॥

शेरशाह के शासन का आरंभ ९४७ हिज़री अर्थात् सन् १५४० ई॰ से हुआ था। इस दशा में यही संभव जान पड़ता है कि कवि ने कुछ थोड़े से पद्य तो सन् १५२० ई॰ में ही बनाए थे, पर ग्रंथ को १९ या २० वर्ष पीछे शेरशाह के समय में पूरा किया। 'पद्मावत' का एक बँगला अनुवाद अराकान राज्य के वजीर मगन ठाकुर ने सन् १६५० ई॰ के आसपास आलो-उजालो नामक एक कवि से कराया था। उसमें भी 'नव सै सत्ताइस' ही पाठ माना गया है––

शेख मुहम्मद जनि जखन रचिल ग्रंथ संख्या सप्तविंश नवशत

पदमावत की हस्तलिखित प्रतियाँ अधिकतर फारसी अक्षरो में मिली हैं जिनमें 'सत्ताइस' और 'सैंतालिस' प्रायः एक ही तरह लिखे जायँगे। इससे कुछ लोगों का यह भी अनुमान है कि 'सैंतालिस’ को लोगों ने भूल से सत्ताइस पढ़ लिया है।

जायसी अपने समय के सिद्ध फकीरों में गिने जाते थे। अमेठी के राजघराने में इनका बहुत मान था। जीवन के अंतिम दिनों में जायसी अमेठी-से दो मील दूर एक जंगल में रहा करते थे। वहीं इनकी मृत्यु हुई। काजी नसरुद्दीन हुसैन जायसी ने, जिन्हें अवध के नवाब शुजाउद्दौला से सनद मिली थी, अपनी याददाश्त में जायसी का मृत्युकाल ४ रजब ९४९ हिजरी लिखा है। वह काल कहाँ तक ठीक है, नहीं कहा जा सकता।