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हिंदी-साहित्य का इतिहास

है आगे परबत कै बाटा। विषम पहार अगम सृठि घाटा‍॥
बिच बिच नदी खोह औ नारा। ठावँहि ठावँ बैठ बटपारा॥


उसमान––ये जहाँगीर के समय में वर्त्तमान थे और गाजीपुर के रहनेवाले वाले थे। इनके पिता का नाम शेख हुसैन था और ये पाँच भाई थे। और चार भाइयों के नाम थे––शेख अजीज, शेख मानुल्लाह, शेख फैजुल्लाह, शेख हसन। इन्होंने अपना उपनाम "मान" लिखा है। ये शाह निजामुद्दीन चिश्ती की शिष्यपरंपरा में हाजी बाबा के शिष्य थे। उसमान ने सन् १०२२ हिजरी अर्थात् सन् १६१३ ईसवी में 'चित्रावली' नाम की पुस्तक लिखी। पुस्तक के आरंभ में कवि ने स्तुति के उपरांत पैगंबर और चार खलीफो की, बादशाह (जहाँगीर) की तथा शाह निजामुद्दीन और हाजी बाबा की प्रशंसा लिखी है। उसके आगे गाजीपुर नगर का वर्णन करके कवि ने अपना परिचय देते हुए लिखा है कि––

आदि हुता विधि माथे लिखा। अच्छर चारि पढ़ै हम सिखा॥
देखत जगत चला सब जाई। एक बचन पै अमर रहाई॥
वचन समान सुधा जग नाहीं। जेहि पाए कवि अमर रहाही॥
मोहूँ चाउ उठा पुनि हीए। होउँ अमर यह अमरित पीए॥

कवि ने "योगी ढूँढ़न खंड" में काबुल, बदख्शाँ, खुरासान, रूस, साम, मिस्र, इस्तंबोल, गुजरात, सिंहलद्वीप आदि अनेक देशों का उल्लेख किया है। सबसे बिलक्षण बात है जोगियों का अँगरेजो के द्वीप में पहुँचना––

वलंदीप देखा अँगरेजा। तहाँ जाइ जेहि कठिन करेजा।
ऊँच-नीच धन-संपति हेरा। मद बराह भोजन जिन्ह केरा॥

कवि ने इस रचना में जायसी का पूरा अनुकरण किया है। जो-जो विषय जायसी ने अपनी पुस्तक में रखे है उन विषयो पर उसमान ने भी कुछ कहा है‌। कहीं कहीं तो शब्द और वाक्यविन्यास भी वही है। पर विशेषता यह है कि कहानी बिलकुल कवि की कल्पित है, जैसा कि कवि ने स्वयं कहा है––

कथा एक मैं हिए उपाई। कहत मीठ औ सुनत सोहाई॥

कथा का सारांश यह है––