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हिंदी-साहित्य का इतिहास

चतुरानन पढ़ि चारौ बेदू। रहा खोजि पै पाव न भेदू॥
हम प्रवी जेहि आप न सूझा। भेद तुम्हार कहाँ लौं बूझा॥
कौन सो ठाउँ जहाँ तुम नाहीं। हम चख जोति न, देखहिं काही॥
खोज तुम्हार सो, जेहि दिखरावहु पथ। कहा होइ जोगी भए, और बहुत पढ़ें ग्रंथ॥

विरह-वर्णन के अंतर्गत षट्ऋतु का वर्णन सरस और मनोहर हैं––

ऋतु बसंत नौतन बन फूला। जहँ तहँ भौंर कुसुम-रंग भूला॥
आहि कहाँ सो, भँवर हमारा। जेहि बिनु बसत बसंत उजारा॥
रात बरन पुनि देखि न जाई। मानहुँ दवा देहूँ दिसि लाई॥
रतिपति दुरद ऋतुपती वली। कानन-देह आई दलमली॥

शेखनबी–– ये जौनपुर जिले में दोसपुर के पास मऊ नामक स्थान के रहनेवाले थे और सवत् १६७६ में जहाँगीर के समय में वर्तमान थे। इन्होंने "ज्ञानदीप" नामक एक आख्यान-काव्य लिखा जिसमें राजा ज्ञानदीप और रानी देवजानी की कथा है।

यहीं प्रेममार्गी सूफी कवियों की प्रचुरता की समाप्ति समझनी चहिए। पर जैसा कहा जा चुका है, काव्यक्षेत्र में जब कोई परंपरा चल पड़ती है तब उसके प्राचुर्य्य-काल के पीछे भी कुछ दिनों तक समय समय पर उस शैली की रचनाएँ थोड़ी बहुत होती रहती है; पर उनके बीच कालांतर भी अधिक रहता है और जनता पर उनको प्रभाव भी वैसा-नहीं रह जाता। अतः शेखनबी से प्रेमगाथा परंपरा समाप्त समझनी चाहिए। 'ज्ञानदीप' के उपरांत सूफियो की पद्धति पर जो कहानियाँ लिखी गई उनका संक्षिप्त उल्लेख नीचे किया जाता है।

कासिमशाह––ये दरियाबाद (बाराबंकी) के रहनेवाले थे और संवत् १७८८ के लगभग वर्त्तमान थे। इन्होंने "हंस जवाहिर" नाम की कहानी लिखी जिसमे राजा हस और रानी जवाहिर की कथा है।

फारसी अक्षरों में छपी (नामी प्रेस, लखनऊ) इस पुस्तक की एक प्रति हमारे पास है। उसमें कवि शाहेवक्त का इस प्रकार उल्लेख करके––

मुहमदसाह दिल्ली सुलतानू। का मन गुन ओहि केर बखानू॥
छाजै पाट छत्र सिर ताजू। नावहिं सीस जगत के राजू॥