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प्रेममागी (सूफी) शाखा

रूपवंत दरसन मुँह राता। भागवत ओहि कीन्ह विधाता॥
दरववंत धरम महँ पूरा। ज्ञानवत खड्ग महै सूरा॥

अपना परिचय इन शब्दों में दिया है––

दरियाबाद साँझ मम ठाउँ। अमानुल्ला पिता कर नाउँ॥
तहवों मोहिं जनम विधि दीन्हा। कासिम नावँ जाति कर हीना॥
ऊँचे बीच विधि कीन्ह कमीना। ऊँच सभा बैठे चित दीना॥
ऊँचे संग ऊंच मन भावा। तब भा ऊँच ज्ञान-बुधि पावा॥
ऊँचा पंथ प्रेम का होई। तेहि महँ ऊँच भए सब कोई॥

कथा का सार कवि ने यह दिया है––

कथा जो एक सुपुत महँ रहा। सो परगट उघारि मैं कहा॥
हंस जवाहिर बिधि औतारा। निरमल रूप सो दई सँवारा॥
बलख नगर बुरहान सुलतानू। तेहि घर हंस भए जस भानू॥
आलमशाह चीनपति भारी। तेहि घर जनमा जवाहिर बारी॥
तेहि कारन वह भएउ बियोगी। गएउ सो छाडि देस होइ जोगी॥
अंत जवाहिर हंस घर आनी। सो जग महँ यह गयउ बखानी॥
सो सुनि ज्ञान-कथा मैं कीन्हा। लिखेउँ सो प्रेम, रहै जग चीन्हा॥

इनकी रचना बहुत निम्न कोटि की है। इन्होंने जगह-जगह जायसी की पदावली तक ली है, पर प्रौढ़ता नही है।

नूरमुहम्मद––ये दिल्ली के बादशाह मुहम्मदशाह के समय में थे और सबरहद नामक स्थान के रहने वाले थे जो जौनपुर जिले में जौनपुर-आजमगढ़ की सरहद पर है। पीछे सबरहद से थे अपनी सुसराल भादों (जिला-आजमगढ़) चले गए। इनके श्वसुर शमसुद्दीन को और कोई वारिस न था इससे ये ससुराल ही में रहने लगे। नूरमुहम्मद के भाई मुहम्मद शाह सबरहद ही में रहे। नूरमुहम्मद के दो पुत्र हुए––गुलाम हसनैन और नसीरुद्दीन। नसीरुद्दीन की वंश-परंपरा में शेख-फिदाहुसैन अभी वर्त्तमान हैं, जो सबरहद और कभी कभी भादो में भी रहा करते हैं। अवस्था इनकी ८० वर्ष की है।