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प्रेममागी(सूफी)शाखा

जहँ इसलामी मुख सों निसरी बात॥
तहाँ सकल सुख मंगल, कष्ट नसात॥

सूफी आख्यान-काव्यों की अखंडित परंपरा की यहीं समाप्ति मानी जाती है। इस परंपरा में मुसलमान कवि ही हुए हैं। केवल एक हिंदू मिला है। सूफी मत के अनुयायी सूरदास नाम के एक पंजाबी हिंदू ने शाहजहाँ के समय में 'नल दयमंती कथा' नाम की एक कहानी लिखी थी पर इसकी रचना अत्यंत निकृष्ट है।

साहित्य की कोई अखंड परंपरा समाप्त होने पर भी कुछ दिन तक उस परंपरा की कुछ रचनाएँ इधर-उधर होती रहती है। इस ढंग की पिछली-रचनाओं में 'चतुर्मुकुट की कथा' और 'यूसुफ-जुलेखा' उल्लेख-योग्य हैं।