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रामभक्ति-शाखा

वैरागियों की परंपरा में रामानंदजी का मानिकपुर के शेख तकी पीर के साथ वाद-विवाद होना माना जाता है। ये शेख तकी दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोदी के समय में थे। कुछ लोगो का मत है कि वे सिकंदर लोदी के पीर (गुरु) थे और उन्हीं के कहने से उसने कबीर साहब को जंजीर से बाँधकर गंगा में डुबाया था। कबीर के शिष्य धर्मदास ने भी इस घटना का उल्लेख इस प्रकार किया है––

साह सिकंदर जल में बोरे, बहुरि अग्नि परजारे। मैमत हाथी आनि झुकाये, सिंहरूप दिखराये॥
निरगुन कयै, अभयपद गावैं, जीवन को समझाए। काजी पंडित सबै हराए, पार कोउ नहिं पाये॥

शेख तकी और कबीर का संवाद प्रसिद्ध ही है। इससे सिद्ध होता है कि रामानंदजी दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोदी के समय में वर्त्तमान थे। सिकंदर लोदी, संवत् १५४६ से संवत् १५७४ तक गद्दी पर रहा। अतः इन २८ वर्षा के काल-विस्तार के भीतर––चाहे आरंभ की ओर, चाहे अंत की ओर––रामानंदजी का वर्त्तमान रहना ठहरता है।

कबीर के समान सेन भगत भी रामानंदजी के शिष्यों में प्रसिद्ध है। ये सेन भगत बाँधवगढ़-नरेश के नाई थे और उनकी सेवा किया करते थे। ये कौन बाँधवगढ़-नरेश थे, इसका पता 'भक्तमाल-रामरसिकावली' में रीवाँ-नरेश महाराज रघुराजसिंह ने दिया है––

बाँधवगढ़ पूरब जो गायो। सेन नाम नापित तहँ जायो॥
ताकी रहै सदा यह रीती। करत रहै साधुन सों प्रीती॥
तहँ को राजा राम बघेला। बरन्यो जेहि कबीर को चेला॥
करै सदा तिनको सेवकाई। मुकर दिखावे तेल लगाई॥

रीवाँ-राज्य के इतिहास में राजा राम या रामचंद्र का समय संवत् १६११ से १६४८ तक माना जाता है। रामानंदजी से दीक्षा लेने के उपरांत ही सेन पक्के भगत हुए होंगे। पक्के भक्त हो जाने पर ही उनके लिये भगवान् के नाई का रूप धरनेवाली बात प्रसिद्ध हुई होगी। उक्त चमत्कार के समय वे राज-सेवा में थे। अतः राजा रामचंद्र से अधिक से अधिक ३० वर्ष पहले यदि उन्होने दीक्षा ली हो तो संवत् १५७५ या १५८० तक रामानंदजी का वर्त्तमान रहना ठहरता