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प्रकरण ४

सगुण धारा

अद्वैतवाद के विविध-स्वरूप, ११६; वैष्णव श्रीसंप्रदाय, ११६; रामानंद का समय ११६-११७; इनकी गुरु-परंपरा, ११७-११८, इनकी उपासना-पद्धति, ११; इनकी उदारता, १२-११६: इनके शिष्य, ११६; इनके ग्रंथ, ११६; इनके वृत्त के संबध से प्रवाद, १२०; इन प्रवादों-पर विचार, १२०-१२४; कवि-परिचय, १२४-९५०; हनुमान जी की उपासना के ग्रंथ, १५०-१५१; रामभत्ति काव्य-धारा की सबसे बड़ी विशेषता, १५ १; भक्ति के पूर्ण स्वरूप का विकास, १५१-५२; रामभक्ति की श्रृगारी भावना, १५२-५४ ।

प्रकरण ५

वैष्णवधर्म आंदोलन के प्रवर्तक श्री वल्लभाचार्य, १५५; इनका दार्शनिक सिद्धांत, १५५; इनकी प्रेम-साधना, १५६; इनके अनुसार जीव के तीन भेद, ३६६; इनके समय की राजनीतिक और धार्मिक परिस्थिति, १५६-५७, इनके ग्रंथ, १५७; वल्लभ-संप्रदाय की उपासना-पद्धति का स्वरूप, १५७; कृष्णभक्ति काव्य का स्वरूप, १५८; वैष्णव धर्म का साप्रदायिक स्वरूप, १५८; देश की भक्ति-भावना पर सूफियों का प्रभाव, १५९, कवि-परिचय, १५९-१९५; 'अष्टछाप' की प्रतिष्ठा, ६६३-१६४; कृष्णभक्ति-परंपरा के श्रीकृष्ण, १६४; कृष्णचरित कविता का रूप, १६४-१६५ ।

प्रकरण ६

भक्तिकाव्य-प्रवाह उमड़ने का मूल कारण, १६६ ; पठान शासको का भारतीय साहित्य एव संस्कृति पर प्रभाव, १६६-१६७; कवि परिचय, १६८-२३०; सूफी रचनाओं के अतिरिक्त भक्तिकाल के अन्य आख्यान-काव्य, २३०-२३१ ।