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हिंदी-साहित्य का इतिहास

प्रसंगो की उद्भावना करनेवाली नहीं। उनको कल्पना वस्तुस्थिति को ज्यों की त्यों लेकर उसके मार्मिक स्वरूपों के उद्घाटन में प्रवृत्त होती थी, नई वस्तुस्थिति खड़ी करने नहीं जाती थी। गोपियो को छकानेवाली कृष्णलीला के अंतर्गत छोटी मोटी कथा के रूप में कुछ दूर तक मनोरंजक और कुतूहलप्रद ढंग से चलनेवाले नाना प्रसंगों की जो नवीन उद्भावना सूरसागर में पाई जाती है, वह तुलसी के किसी ग्रंथ मे नहीं मिलती।

'रामचरितमानस' में तुलसी केवल कवि के रूप में ही नहीं, उपदेशक के रूप में भी सामने आते है। उपदेश उन्होने किसी न किसी पात्र के मुख से कराए है, इससे काव्यदृष्टि से यह कहा जा सकता है कि वे उपदेश पात्र के स्वभाव-चित्रण के साधनरूप है। पर बात यह नहीं है। उपदेश उपदेश के लिये ही है।

गोस्वामी के रचे बारह ग्रंथ प्रसिद्ध है जिनमें ५ बड़े और ७ छोटे है। दोहावली, कवित्तरामायण, गीतावली, रामचरितमानस, विनयपत्रिका, बड़े ग्रंथ है तथा रामलला-नहछू, पार्वतीमंगल, जानकीमंगल, बरवै रामायण, वैराग्य-सदीपिनी, कृष्णगीतावली, और रामाज्ञा-प्रश्नावली छोटे। पंडित रामगुलाम द्विवेदी ने, जो एक प्रसिद्ध भक्त और रामायणी हो गए हैं, इन्ही बारह ग्रंथों को गोस्वामीजी कृत माना है। पर शिवसिंहसरोज में दस और ग्रंथों के नाम गिनाए गए है, यथा––रामसतसई, संकटमोचन, हनुमानबाहुक, रामसलाका, छंदावली, छप्पय रामयण, कड़खा रामायण, रोलारामायण, झूलना रामायण और कुंडलिया रामायण। इनमे से कई एक तो मिलते ही नहीं। हनुमानबाहुक को पंडित रामगुलामजी ने दोहावली के ही अतर्गत लिया है। रामसतसई में सात सौ से कुछ अधिक दोहे हैं जिनमे से डेढ़ सौ के लगभग दोहावली के ही है। अधिकांश दोहे उसमे कुतूहलवर्द्धक, चातुर्य लिए हुए और क्लिष्ट है। यद्यपि दोहावली में भी कुछ दोहे इस ढंग के है, पर गोस्वामी जी ऐसे गंभीर, सहृदय और कलामर्मज्ञ महापुरुष का ऐसे पद्यों का इतना बड़ा ढेर लगाना समझ में नहीं आता। जो हो, बाबा बेनीमाधवदास के नाम पर प्रणीत चरित में भी रामसतसई का उल्लेख हुअा है।