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हिंदी-साहित्य का इतिहास


कासों राग द्विज को, रिसात भहरात राम,
अति थहरात गात लागत हैं धरको।
सीता को सँताप मेटि प्रगट प्रताप कीनो,
को है वह आप चाप तोज्यों जिन हर को॥



जानकी को मुख न विलोक्यो ताते कुंडल
न जानत हौं, वीर पायँ छुवै रघुराई के।
हाथ जो निहारे नैन फूटियो हमारे,
ताते कंकन न देखे, बोल कह्यो सतभाइ के॥
पायँन के परिवे कौ जाते दास लछमन
याते पहिचानत है भूषन जे पायँ के॥
बिछुआ हैं एई, अरु झाँझ हैं एई जुग,
नूपर है तेई राम जानत जराइ के॥



सातों सिधु, सातों लोक, सातों रिषि हैं ससोक,
सातों रवि-थोरे थोरे देखे न डरात मैं।
सातों दीप, सातों ईति काँप्योई करत और
सातों मत रात दिन प्रान हैं न गात मैं॥
सातो चिरजीव बरराइ उठे बार बार,
सातों सुर हाय हाय होत दिन रात मै।
सातहूँ पताल काल सबद कराल, राम
भेदे सात ताल, चाल परी, सात सात में॥



एहो हनू! कह्यौ श्री रघुवीर कछू सुधि है सिय की छिति माही।
है प्रभु लक कलक बिना सु बसै तहँ रावन बाग की छाँही॥
जीवति है? कहिबेई को नाथ, सु क्यों न मरी हमतें बिछुराही?
प्रान बसै पदपंकज में जम आवत है पर पावत नाही॥

रामभक्ति का एक अंग आदि रामभक्त हनुमानजी की उपासना भी हुई स्वामी रामानंदजी कृत हनुमानजी की स्तुति का उल्लेख हो चुका है। गोस्वामी