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हिंदी-साहित्य का इतिहास

और वहाँ के बहुत से मंदिरों में अब राम की 'तिरछी चितवन' और 'बाँकी अदा' के गीत गाए जाने लगे हैं। इस पंथ के लोगों का उत्सव प्रति वर्ष चैत्र कृष्ण नवमी को वहाँ होता है। ये लोग सीता-राम को 'युगल सरकार' कहा करते हैं और अपना आचार्य्य 'कृपानिवास' नामक एक कल्पित व्यक्ति को बतलाते हैं जिसके नाम पर एक 'कृपानिवास-पदावली' सं० १९०१ में छपी (प्रिंटिंग प्रेस, लखनऊ)। इसमें अनेक अत्यंत अश्लील पद हैं जैसे––

(१) नीबी करषत वरजति प्यारी।
रसलंपट सपुट कर जोरत, पद परसत पुनि लै बलिहारी॥

[पृ० १३८]


(२) पिय हँसि रस रस कचुकि खोलैं।
चमकि निवारति पानि लाडिली, मुरक मुरक मुख बोलैं॥

ऐसी ही एक और पुस्तक 'श्रीरामावतार-भजन-तरंगिणी' इन लोगों की ओर से निकली है जिसका एक भजन देखिए––

हमारे पिय ठाढे सरजू तीर।
छोड़ि लाज मैं जाय मिली जहँ खड़े लखन के बीर॥
मृदु मुसकाय पकरि कर मेरो खैंचि लियो तब चीर।
झाऊ वृक्ष की झाड़ी भीतर करन लगे रति धीर॥

भगवान् राम के दिव्य पुनीत चरित्र के कितने घोर पतन की कल्पना इन लोगों के द्वारा हुई है, यह दिखाने के लिये इतना बहुत है। लोकपावन आदर्श का ऐसा वीभत्स विपर्य्यय देखकर चित्त क्षुब्ध हो जाता है। रामभक्ति-शाखा के साहित्य का अनुसंधान करनेवालों को सावधान करने के लिये ही इस 'रसिक शाखा' का यह थोड़ा सा विवरण दे दिया गया है। 'गुह्य', 'रहस्य', 'माधुर्य्य भाव' इत्यादि के समावेश से किसी भक्तिमार्ग की यही दशा होती है। गोस्वामीजी ने शुद्ध, सात्त्विक और खुले रूप में जिस रामभक्ति का प्रकाश फैलाया था, वह इस प्रकार विकृत की जा रही है।