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आधुनिक गद्य साहित्य का प्रवर्तन
प्रथम उत्थान

(सं॰ १९२५-५०)

भारतेंदु का प्रभाव, ४९९; उनके पूर्ववर्ती और समकालीन लेखको से उनकी शैली की भिन्नता, ४४९; गद्य साहित्य पर उनका प्रभाव, ४४९; खड़ीबोली गद्य की प्रकृत-साहित्यिक-रूप-प्राप्ति, ४५०; भारतेंदु और उनके सहयोगियो की शैली, ४५०-५२; इनका दृष्टि-क्षेत्र और मानसिक अवस्थान, ४५२; हिंदी का आरंभिक नाट्य-साहित्य, ४५३-५४; भारतेंदु के लेख और निबंध, ४५४-५५; हिंदी का पहला मौलिक उपन्यास, ४५५; इसका परवर्ती उपन्यास-साहित्य, ४५५-५६; भारतेंदु-जीवन-काल की पत्र-पत्रिकाएँ, ४५६-५९; भारतेंदु हरिश्चंद्र––४५९-६४; उनकी जगन्नाथ-यात्रा, ४५९; उनका पहला अनूदित नाटक,४५९; उनकी पत्र-पत्रिकाएँ, ४५९; उनकी 'हरिश्चंद-चंद्रिका' की भाषा, ४५९; इस 'चंद्रिका' के सहयोगी, ४६०; इसके मनोरंजक लेख, ४६०, भारतेंदु-के नाटक, ४६०-६१; इनकी विशेषताएँ, ४६१; उनकी सर्वतोमुखी प्रतिभा, ४६१-६२; उनके सहयोगी, ४३२; उनकी शैली के दो रूप, ४६२-६४। पं॰ प्रतापनारायण मिश्र––४६४-६८: भारतेंदु से उनकी शैली की भिन्नता, ४६५; उनका पत्र, ४६५; उनके विषय, ४६५; उनके नाटक, ४६६। पं॰ बाल कृष्ण भट्ट––४६६-६८; उनका 'हिंदी-प्रदीप', ४६६; उनकी शैली, ४६६; उनके गद्य-प्रबंध, ४६७; उनके नाटक, ४६८; पं॰ बदरीनारायण चौधरी––४६८-७२; उनकी शैली की विलक्षणता, ४६९; उनके नाटक ४६९-७०; उनकी पत्र-पत्रिकाएँ, ४७०-१; समालोचना का सूत्रपात, ४७१। लाला श्रीनिवासदास––४७२-७४; उनके नाटक, ४७२-७३; उनका उपन्यास, ४७३; ठाकुर जगमोहन सिंह––४७४-७६; उनका प्रकृति-प्रेम, ४७४; उनकी शैली की विशेषता, ४७४-७५; बाबू तोताराम––४७६-७७, उनका पत्र, ४७६; उनकी हिंदी-सेवा, ४७६; भारतेंदु के अन्य सहयोगी, ४७७-८२। हिन्दी का प्रचार कार्य––४८२-८७; इनमे बाधाएँ, ४८२; भारतेंदु और उनके सहयोगियों को उद्योग ४८२-८३; काशी-नागरी प्रचारिणी