पृष्ठ:हिंदी साहित्य का इतिहास-रामचंद्र शुक्ल.pdf/२०३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
१८०
हिंदी-साहित्य का इतिहास

प्रात समय उठि जसुमति जननी गिरिधर सुत को उबटि न्हवावत
करि सिंगार बसन भूषन सजि फूलन रचि रचि पाग बनावति ।।
छुटे बंद बागे अति सोभित, बिच बिच चोव अरगजा लावति ।
सूथन लाल फूंदना सोभित, आजु कि छबि कहु कहति न आवति ।।
विविध कुसुम की माला उर धरि श्री कर मुरली बेंत गहावति ।
लै दरपन देखे श्रीमुख को, गोविंद प्रभु चरननि सिर नावति ।।

( ९ ) हितहरिवंश---राधावल्लभी संप्रदाय के प्रवर्तक गोसाई हितहरिवंश का जन्म संवत् १५५६ मे मथुरा से ४ मील दक्षिण बादगाँव में हुआ था । राधावल्लभी संप्रदाय के पंडित गोपालप्रसाद शर्मा ने जन्म संवत् १५३० माना है, जो सब घटनाओं पर विचार करने से ठीक नहीं जान पड़ता । ओरछा-नरेश महाराज मधुकरशाह के राजगुरु श्रीहरिराम व्यासजी संवत् १६२२ के लगभग आपके शिष्य हुए थे । हितहरिवंशजी गौड़ ब्राह्मण थे । इनके पिता का नाम केशवदास मिश्र और माता का नाम तारावती था।

कहते हैं हितहरिवंशजी पहले माध्वानुयायी गोपालभट्ट के शिष्य थे । पीछे इन्हें स्वप्न में राधिकाजी ने मंत्र दिया और इन्होंने अपना एक अलग संप्रदाय चलाया । अतः हित संप्रदाय को माध्व संप्रदाय के अंतर्गत मान सकते है । हितहरिवंशजी के चार पुत्र और एक कन्या हुई । पुत्रों के नाम वनचंद्र, कृष्ण-चद्र, गोपीनाथ और मोहनलाल थे । गोसाईजी ने संवत् १५८२ में श्री राधाबल्लभजी की मूर्ति वृंदावन में स्थापित की और वहीं विरक्त भाव से रहने लगे । ये संस्कृत के अच्छे विद्वान् और भाषा-काव्य के अच्छे मर्मज्ञ थे । १७० श्लोकों का "राधासुधानिधि" आप ही का रचा कहा जाता है । ब्रजभाषा की रचना आपकी यद्यपि बहुत विस्तृत नहीं है, पर है बड़ी सरस और हृदयग्राहिणी । आपके पदों का संग्रह "हित चौरासी" के नाम से प्रसिद्ध है क्योकि उसमे ८४ पद हैं । प्रेमदास की लिखी इस ग्रंथ की एक बहुत बड़ी टीका (५०० पृष्ठों की) ब्रजभाषा गद्य में है ।

इनके द्वारा ब्रजभाषा की काव्यश्री के प्रसार में बड़ी सहायता पहुँची है । इनके कई शिष्य अच्छे-अच्छे कवि हुए है। हरिराम व्यास ने इनके गोलोकवास पर बड़े चुभते पद कहे है । सेवकजी, ध्रुवदास आदि इनके शिष्य बड़ी सुंदर