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हिंदी-साहित्य का इतिहास

विपिन धन कुंज रति केलि भुज मेलि रुचि

स्याम स्यामा मिले सरद की जामिनी ।

हृदय अति फूल, रसमूल पिय नागरी

कर निकर मस्त मनु विविध गुत रागिनी ॥

सरस गति हास परिहास आवेस बस

दलित दल मदन बल कोक रस जामिनी ।

हितहरिबंस सुनि लाल लावन्य भिदे

प्रिया अति सूर सुख-सुरत संग्रामिनी ॥

( १० ) गदाधर भट्ट---ये दक्षिणी ब्राह्मण थे । इनके जन्म-संवत् आदि का ठीक-ठीक पता नहीं । पर यह बात प्रसिद्ध है कि ये श्री चैतन्य महाप्रभु को भागवत सुनाया करते थे। इनका समर्थन भक्तमाल की इन पंक्तियों से भी होता है---

भागवत सुधा बरखै बदन, काहू को नाहिंन दुखद ।
गुणनिकर गदाधर भट्ट अति सबहिन को लागै सुखद ॥

श्री चैतन्य महाप्रभु का आविर्भाव संवत् १५४२ में और गोलोकवास १५८४ में माना जाता है । अतः संवत् १५८४ के भीतर ही आपने श्री महाप्रभु से दीक्षा ली होगी । महाप्रभु के जिन छः विद्वान् शिष्यों ने गौडीय संप्रदाय के मूल संस्कृत ग्रंथों की रचना की थी उनमे जीव गोस्वामी भी थे । वे वृंदावन में रहते थे । एक दिन दो साधुओं ने जीव गोस्वामी के सामने गदाधर भट्टजी का यह पद सुनाया---

सखी हौं स्याम रंग रँगी ।
देखि बिकाय गई वह मूरति, सूरत माहिं पगी ॥
संग हुतो अपनो सपनो सो सोइ रहो रस खोई ।
जागेहु आगे दृष्टि परै, सखि, नेकु न न्यारो होई ॥
एक जु मेरी अँखियनि में निसि द्यौस रह्यो करि भौन ।
गाय चरावन जात सुन्यो, सखि, सो धौं कन्हैया कौन ?
कासों कहौं कौन पतियावै कौन करे बकवाद ?
कैसे कै कहि जात गदाधर, गूँगे तें गुर-स्वाद ?