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कृष्णभक्ति-शाखा

(साखी) व्यास न कथनी काम की, करनी है इक सार।
भक्ति बिना पंडित वृथा, ज्यों खर चंदन-भार॥
अपने अपने मत लगे, बादि मचावत सोर।
ज्यों त्यों सबको सेइबो एकै नदंकिसोर॥
प्रेम अतन या जगत में, जानै बिरला कोय।
व्यास सतन क्यों परसिहै पचि हार्यो जग रोय॥
सती, सूरमा संत जन, इन समान नहिं और।
अगम पंथ पै पग धरै, डिगे न पावैं ठौर॥

(१६) रसखान––ये दिल्ली के एक पठान सरदार थे। इन्होंने 'प्रेम-बाटिका' में अपने को शाही खानदान का कहा है––

देखि गदर हित साहिबी, दिल्ली नगर मसान।
छिनहिं बादसा-बस की, ठसक छाँडिं रसखान॥

संभव है पठान बादशाहों की कुल परंपरा से इनका संबंध रहा हो। ये बडे़ भारी कृष्णभक्त और गोस्वामी विट्ठलनाथजी के बड़े कृपापात्र शिष्य थे। "दो सौ बावन वैष्णवो की वार्ता" में इनका वृत्तात आया है। उक्त वार्ता के अनुसार ये पहले एक बनिए के लड़के पर आसक्त थे। एक दिन इन्होंने किसी को कहते हुए सुना कि भगवान् से ऐसा प्रेम करना चाहिए जैसे रसखान का उस बनिए के लड़के पर हैं। इस बात से मर्माहत होकर ये श्रीनाथजीको ढूँढ़ते ढूँढ़ते गोकुल आए और वहाँ गोसाई विझलनाथजी से दीक्षा ली। यही आख्यायिका एक दूसरे रूप में भी प्रसिद्ध है। कहते है जिस स्त्री पर ये आसक्त थे वह बहुत मानवती थी और इनका अनादर किया करती थी। एक दिन ये श्रीमद्भागवत का फारसी तर्जुमा पढ़ रहे थे। उसमें गोपियो के अनन्य और अलौकिक प्रेम को पढ़ इन्हे। ध्यान हुआ कि उसी से क्यों न मन लगाया जाय जिसपर इतनी गोपियाँ मरती थीं। इसी बात पर थे वृंदावन चले आए। 'प्रेमवाटिका' के इस दोहे का संकेत लोग इस घटना की ओर बताते है––

तोरि मानिनी तें हियो फोरि भोहिनी मान। प्रेमदेव को छबिहि लखि भए मियाँ रसखान॥