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(.सं० १९५०-७५-)

पडित श्रीधर पाठक की कथा की सार्वभौम मार्मिकता ६००, ग्रामगीतों की मार्मिकता ६००-०१, प्रकृत स्वच्छंदतावाद का स्वरूप, ६०१-०३; हिंदी-काव्य में 'स्वच्छंदता' की प्रवृत्ति का सर्वप्रथम आभास, ६०३; इसमें अवरोध, ६०४, इस अवरोध की प्रतिक्रिया, ६०४; श्रीधर पाठक, ६०४-०७, हरिऔध, ६०७ ०९; महावीरप्रसाद द्विवेदी, ६१०-१२; द्विवेदी-मंडल के कवि, ६१२; इस मंडल के बाहर की काव्य-भूमि, ६२२ ३८।


तृतीय उत्थान

( स० १९७५ से )

सामान्य परिचय

खड़ी बोली पद्य के तीन रूप और उनका सापेक्षिक महत्त्व, ६३९; हिंदी के नए छंदों पर विचार, ६३९ ४१; काव्य के वस्तु-विधान और अभिव्यंजन-शैली में प्रकट होने वाली प्रवृत्तियाँ, ६४१-४४ खड़ी बोली में काव्यत्व का स्फुरण, ६४४-४५; वर्तमान काव्य पर काल का प्रभाव, ६४५-४६; चली आती हुई काव्य-परंपरा के अवरोध के लिये प्रतिक्रिया, ६४ ; नूतन परंपरा प्रवर्त्तक कवि, ६४७ ४९; इनकी विशेषताएँ, ६५०; इनका वास्तविक लक्ष्य, ६५०; रहस्यवाद, प्रतीकवाद और छायावाद, ६५०; हिंदी में छायावाद का स्वरूप और परिणाम, ६५०-५१; भारतीय काव्यधारा से इसका पार्थक्य, ६५१, इसकी उत्पत्ति का मूल स्रोत, ६५१-५२, ‘छायावाद' शब्द का अनेकार्थी प्रयोग ६२५-५३; 'छायावाद' के साथ ही योरप के अन्य वादों के प्रवर्त्तन की अनधिकार चेष्टा, ६५३; 'छायावाद’ की कविता का प्रभाव, ६५३ ५४, आधुनिक कविता की अन्य धाराएँ, ६५४ ६५३, स्वाभाविक स्वच्छंदता की ओर प्रवृत्त कवि, ६५६-५७, खड़ी बोली पद्य की तीन धाराएँ, ६५७ ५८, ब्रजभाषा काव्य- २-द्विवेदीकाल में प्रवर्तित खड़ी बोली की काव्य-धारा, ६६०; छायावाद, ६६५;जयशंकर प्रसाद, ६७८; सुमित्रानंदन पंत, ६९४; सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, ७१४; महादेवी वर्मा, ७१९; अनुक्रमणिका (साहित्यकार), ७२३; अनुक्रमणिका (साहित्य), ७४३;