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हिंदी-साहित्य का इतिहास

(५) नरोत्तमदास––ये सीतापुर जिले के बाड़ी नामक कसबे के रहने वाले थे। शिवसिंह-सरोज में इनका संवत् १६०२ में वर्तमान रहना लिखा है। इनकी जाति का उल्लेख कहीं नहीं मिलता। इनका 'सुदामा-चरित्र' ग्रंथ बहुत प्रसिद्ध है। इसमे घर की दरिद्रता का बहुत ही सुंदर वर्णन है। यद्यपि यह छोटा है पर इसकी रचना बहुत ही सरस और हृदयग्राहिणी है और कवि की भावुकता का परिचय देती है। भाषा भी बहुत ही परिमार्जित और व्यवस्थित है। बहुतेरे कवियो के समान भरती के शब्द और वाक्य इसमें नहीं है। कुछ लोगों के अनुसार इन्होंने इस प्रकार का एक और खंड-काव्य 'ध्रुवचरित्र' भी लिखा है। पर वह कहीं देखने में नहीं आया। 'सुदामा-चरित्र' का यह सवैया बहुत लोगो के मुँह से सुनाई पड़ता है––

सीस पगा न झगा तन पै, प्रभु! जानें को आहि, बसै केहि ग्रामा।
धोती फटी सी, लटी दुपटी अरु पायँ उपानह को नहिं सामा॥
द्वार खडों द्विज दुर्बल एक, रह्यो चकि सो बसुधा अभिरामा।
पूछत दीनदयाल को धाम, बँसावत आपनो नाम सुदामा॥

कृष्ण की दीनवत्सलता और करुणा का एक यह और सवैया देखिए––

कैसे बिहाल बिवाइन सों भए, कंटक जाल गडें पग जोए।
हाय महादुख पाए सखा! तुम आए इतै न, कितै दिन खोए॥
देखि सुदामा की दीन दसा करुना करिकै करुनानिधि रोए।
पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन वे जल सों पग धोए॥

(६) आलम––ये अकबर के समय के एक मुसलमान कवि थे जिन्होने सन् ९९१ हिजरी अर्थात् संवत् १६३९-४० में "माधवानल कामकंदला" नाम की प्रेमकहानी दोहा-चौपाई में लिखी। पाँच पाँच चौपाइयों (अर्द्धालियो) पर एक एक दोहा या सोरठा है। यह शृंगार रस की दृष्टि से ही लिखी जान पड़ती है, आध्यात्मिक दृष्टि से नहीं। इसमें जो कुछ रुचिरता है वह कहानी की है, वस्तु-वर्णन, भाव-व्यंजना आदि की नहीं। कहानी भी प्राकृत या अपभ्रंश-काल से चली आती हुई कहानी है।