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भक्तिकाल की फुटकल रचनाएँ

(१२) जमाल-ये भारतीय काव्य-परंपरा से पूर्ण परिचित कोई सहृदय मुसलमान कवि थे जिनका रचना-काल संवत् १६२७ अनुमान किया गया है। इनके नीति और शृंगार के दोहे राजपूताने की ओर बहुत जनप्रिय हैं। भावों की व्यंजना बहुत ही मार्मिक पर सीधे-सादे ढंग पर की गई है। इनका कोई ग्रंथ तो नहीं मिलता, पर कुछ संगृहीत दोहे मिलते हैं। सहृदयता के अतिरिक्त इनमें शब्दक्रीड़ा की निपुणता भी थी, इससे इन्होंने कुछ पहेलियाँ भी अपने दोहों में रखी हैं। कुछ नमूने दिए जाते है-

पूनम चाँद, कुसूँभ रँग नदी-तीर द्रुम-डाल। रेत भीत, भुस लीपणो, ए थिर नहीं जमाल॥
रंग जो चोल मजीठ का, संत वचन प्रतिपाल। पाहण-रेख रुकरम गत, ए किमि मिटैं जमाल॥
जमला ऐसी प्रीत कर, जैसी केस कराय। कै काला, कै ऊजला, जब तक सिर स्यूँ जाय॥
मनसा तो गाहक भए, नैना भए दलाल। धनी बसत बेचै नहीं, किस बिध बनै जमाल॥
बालपणे धौला भया, तरुणपणे भया लाल। वृद्धपणे काला भया, कारण कोण जमाल॥
कामिण जावक-रँग रच्यो, दमकत मुकता-कोर। इम हंसा मोती तजे, इम चुग लिए चकोर॥


( १३ ) केशवदास-ये सनाढ्य ब्राह्मण कृष्णदत्त के पौत्र और काशी-नाथ के पुत्र थे। इनका जन्म संवत् १६१२ में और मृत्यु १६७४ के आसपास हुई। ओरछानरेश महाराजा रामसिंह के भाई इंद्रजीतसिंह की सभा में ये रहते थे, जहाँ इनका बहुत मान था। इनके घराने में बराबर संस्कृत के अच्छे पंडित होते आए थे। इनके बड़े भाई बलभद्र मिश्र भाषा के अच्छे कवि थे। इस प्रकार की परिस्थिति में रहकर ये अपने समय के प्रधान साहित्य-शास्त्रज्ञ कवि माने गए। इनके आविर्भाव-काल से कुछ पहले ही रस, अलंकार आदि कव्यांगों के निरूपण की ओर कुछ कवियों को ध्यान जा चुका था। यह स्वाभाविक भी था, क्योंकि हिंदी-काव्य-रचना प्रचुरमात्रा में हो चुकी थी। लक्ष्य ग्रंथों के उपरांत ही लक्षण-ग्रंथों का निर्माण होता है। केशवदासजी संस्कृत के पंडित थे अतः शास्त्रीय पद्धति से साहित्य-चर्चा का प्रचार भाषा में पूर्ण रूप से करने की इच्छा इनके लिये स्वाभाविक थी।

केशवदास के पहले सं॰ १५९८ में कृपाराम थोड़ा रस-निरूपण कर चुके थे। इसी समय मे चरखारी के मोहनलालमिश्र ने 'शृंगार-सागर' नामक एक