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हिंदी-साहित्य का इतिहास

भायो तुम्है केशव सो मोहूँ मन भायो जू॥
छल के निवास ऐसे वचन-विलास सुनि,
सौंगुनो सुरत हू तें स्याम सुख पायो जू॥


कैटभ सो, नरकासुर सो, पल में मधु सो, मुर सो निज मारयो।
लोक चतुर्दश रक्षक केशव, पूरन वेद पुरान विचारयो॥
श्री कमला-कुच-कुंकुम-मंडन-पंडित देव अदेव निहारयो।
सो कर माँगन को बलि पै करतारहु ने करतार पसारयो॥


(रामचंद्रिका से)

अरुण गात अति प्रात पद्मिनी-प्राननाथ भय। मानहु केशवदास कोकनद कोक प्रेममय॥
परिपूरन सिंदूर पूर कैधौं मंगल घट। किधौं शक्र को छत्र मढ्यों मानिक-मयूख पट॥

कै सोनिव-कलित कपाल यह किल कापालिक काल को।
यह ललित लाज कैधौं लसत दिग-भामिनि के भाल को॥


विधि के समान हैं विमानीकृत राजहंस,
विविध विबुध-युत मेरु सो अचल है।
दीपति दिपति अति सातौ दीप देखियत,
दूसरो दिलीप सो सुदक्षिणा को बल है।
सागर उजागर सो बहु बाहिनी को पति,
छनदान प्रिय कैधौं सूरज अमल है॥
सब बिधि समरथ राजै राजा दशरथ,
भगीरथ-पथ-गामी गंगा कैसो जल है॥


मूलन ही की जहाँ अधोगति केसव गाइय। होम-हुतासन-धूम नगर एकै मलिनाइय॥
दुर्गति दुर्गन ही, जो कुटिलगति सरितन ही में। श्रीफल कौ अभिलाष प्रगट कविकुल के जी में॥