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भक्तिकाल की फुटकल रचनाएँ

पद्धति, मोक्षपदी, ध्रुववंदना, कल्याणमंदिर भाषा, वेदनिर्णय पंचाशिका, मारगन विद्या।

इनकी रचना शैली पुष्ट हैं और इनकी कविता दादूपंथी सुंदरदासजी की कविता से मिलती जुलती हैं। कुछ उदाहरण लीजिए––

भोदू! ते हिरदय की आँखें।
जे सरबैं अपनी सुख-संपति भ्रम की संपति भाखैं।
जिन आँखिन सों निरखि भेद गुंन ज्ञानी ज्ञान विचारैं॥
जिन आँखिनं सों लखि सरूप मुनि ध्यान धारना धारैं॥


काया सों विचार प्रीति, माया ही में हार जीति,
लिए हठ रीति जैसे हारिल की लकरी।
चंगुल के जोर जैसे गोह गहि रहे भूमि,
त्यौंही पायँ गाडैं पै न छाँडै टेक पकरी॥
मोह की मरोर सों मरम को न ठौर पावैं,
धावैं चहुँ ओर ज्यों बढ़ावैं जाल मकरी।
ऐसी दुरबुद्धि भूलि, भूठ के झरोखे भूलि,
फूली फिरै ममता जँजीरन सों जकरी॥


(१९) सेनापति––ये अनूपशहर के रहनेवाले कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम गंगाधर, पितामह का परशुराम और गुरु का नाम हीरामणि दीक्षित थी। इनका जन्मकाल संवत् १६४६ के आस-पास माना जाता है। ये बडे़ ही सहृदय कवि थे। ऋतुवर्णन तो इनके ऐसा और किसी शृंगारी कवि ने नहीं किया है। इनके ऋतुवर्णन में प्रकृति-निरीक्षण पाया जाता है। पदविन्यास भी इनका ललित है। कहीं कहीं विरामो पर अनुप्रास का निर्वाह और यमक का चमत्कार भी अच्छा है। सारांश यह कि अपने समय के ये बड़े भावुक और निपुण कवि थे। अपना परिचय इन्होंने इस प्रकार दिया है––

दीक्षित परशुराम दादा हैं, विदित नाम,
जिन कीन्हें जश, जाकी विपुल बडाई है।