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भक्तिकाल की फुटकल रचनाएँ

नीचे मुख्य आख्यान-काव्यों का उल्लेख किया जाता है-

ऐतिहासिक-पौराणिक कल्पित आत्म-कथा
१ रामचरितमानस-मानस (तुलसी) १ ढोला मारु रा दूहा (प्राचीन) १ अर्धकथानक (बनारसीदास)
२ हरिचरित्र (लालचदास) २ लक्ष्मणसेन पद्मावती-कथा (दामोकवि)
३ रुक्मिणी-मंगल (नरहरि) ३ सत्यवती-कथा (ईश्वरदास)
रुक्मिणी-मंगल (नंददास) ४ माधवानल कामकंदला (आलम)
५ सुदामाचरित्र (नरोत्तमदास) ५ रसरतन (पुहकर कवि)
६ रामचंद्रिका (केशवदास) ६ पद्मिनीचरित्र (लालचंद)
७ वीरसिंहदेव-चरित (केशव) ७ कनकमंजरी (काशीराम)
८ बेलि क्रिसन रुकमणी री (जोधपुर के राठौड़ राजा प्रिथीराज)

ऊपर दी हुई सूची में 'ढोला मारू रा दूहा' और 'बेलि क्रिसन रुकमणी री' राजस्थानी भाषा में हैं। ढोला मारू की प्रेमकथा राजपुताने में बहुत प्रचलित है। दोहे बहुत पुराने हैं, यह बात उनकी भाषा से पाई जाती है। बहुत दिनों तक मुखाग्र ही रहने के कारण बहुत से दोहे लुप्त हो गए थे, जिससे कथा की शृंखला बीच बीच में खंडित हो गई थी। इसी से संवत् १६१८ के लगभग जैनकवि कुशल-लाभ ने बीच बीच में चौपाइयाँ रचकर जोड़ दीं। दोहों की प्राचीनता का अनुमान इस बात से हो सकता है कि कबीर की साखियों में ढोला मारू के बहुत से दोहे ज्यों के त्यों मिलते हैं।

'बेलि क्रिसन रुकमणी री' जोधपुर के राठौड़ राजवंशीय स्वदेशाभिमानी पृथ्वीराज की रचना है जिनका महाराणा प्रताप को क्षोभ से भरा पत्र लिखना इतिहास-प्रसिद्ध है। रचना प्रौढ़ भी है और मार्मिक भी। इसमें श्रीकृष्ण और रुक्मिणी के विवाह की कथा है।

'पद्मिनी-चरित्र' की भाषा भी राजस्थानी मिली है।