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हिंदी-साहित्य का इतिहास

आवै यही अब जी में विचार सखी चलि सौतिहुँ, के घर जैए।
मान घटे तें कहा घटिहै जु पै प्रानपियारे को देखन पैए॥



ऊधो! तहाँ ई चलौ लै हमें जहँ कूबरि-कान्ह बसैं एक ठोरी।
देखिय दास अघाय अघाय तिहारे प्रसाद मनोहर जोरी॥
कूबरी सों कछु पाइए मंत्र, लगाइए कान्ह सों प्रीति की डोरी।
कूबरि-भक्ति बढ़ाइए बंदि, चढ़ाइए चंदन बंदन रोरी॥



कढ़िकै निलंक पैठि जाति झुंड झुंडन में,
लोगन को देखि दास आनँद पगति है।
दौरि दौरि जहीं तहीं लाल करि ढारति है,
अंक लगि कंठ लगिबे को उमगति है॥
चमक-झमक-वारी, ठमक-जमक वारी,
रमक-तमक-वारी जाहिर जगति है।
राम! असि रावरे की रन में नरन मैं––
निलज बनिता सी होरी खेलन लगति है॥



अब तो बिहारी के वे बानक गए री, तेरी
तन-दुति-केसर को नैन कसमीर भो।
श्रौन तुव बानी स्वाति-बूँदन के चातक में,
साँसन को भरिबो द्रुपदजा को चीर भो॥
हिय को हरष मरु घरनि को नीर भो, री!
जियरो मनोभव-सरन को तुनीर भो।
एरी! बेगि करिकै मिलापु थिर थापु, न तौ,
आपु अब चहत अतनु को सरीर भो॥