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हिंदी-साहित्य का इतिहास

घूँघट पट की आड़ है हँसति जबै वह दार।
ससि-मंडल में कढ़ति, छनि जनु पियूष की धार॥
भए रसाल रसाल हैं, भरे पुहुष मकरंद।
मान-सान तोरत तुरत, भ्रमत भ्रमर मद-मदं॥

(२५) तोषनिधि––ये एक प्रसिद्ध कवि हुए हैं। ये शृंगवेरपुर (सिंगरौर, जिला इलाहाबाद) के रहनेवाले चतुर्भुज शुक्ल के पुत्र थे। इन्होंने संवत् १७९१ में 'सुधानिधि' नामक एक अच्छा बड़ा ग्रंथ रसभेद और भाव-भेद को बनाया। खोज में इनकी दो पुस्तकें और मिली हैं—विनयशतक और नखशिख। तोषजी ने काव्यांगों के बहुत अच्छे लक्षण और सरस उदाहरण दिए हैं। उठाई हुई कल्पना का अच्छा निर्वाह हुआ है और भाषा स्वाभाविक प्रवाह के साथ आगे बढ़ती है। तोषजी एक बड़े ही सहृदय और निपुण कवि थे। भावों का विधान सघन होने पर भी कहीं उलझा नहीं है। बिहारी के समान इन्होंने भी कहीं कहीं ऊहात्मक अत्युक्ति की है। कविता के कुछ नमूने दिए जाते हैं––



भूषन-भूषित दूषन-हीन प्रवीन महारस मैं छबि छाई।
पूरी अनेक पदारथ तें जेहि में परमारथ स्वारथ पाई॥
और उफतैं मुकतैं उलही कवि तोष अनोष-धरी चतुराई।
होत सबै सुख की जनिता बनि अवति जौं बनिता कविताई॥



एक कहैं हँसि ऊधवजू! ब्रज की जुवती तजि चंद्रप्रभा सी।
जाय कियो कह तोष प्रभू! एक प्रानप्रिया लहि कंस की दासी॥
जो हुते कान्ह प्रवीन महा सो हहा! मथुरा में कहां मति नासी।
जीव नहीं उबियात जबै ढिग पौढ़ति हैं कुबिजा कछुवा सी?



श्रीहरि की छवि देखिबे को अँखियाँ प्रति रोमहि में करि देतो।
बैनन के सुनिबे हित स्रौत जितै-तित सो करतौ करि हेतो॥
मो ढिग छाँडि न काम कहूँ रहै तोष कहै लिखितो बिधि एतौ।
तौ करतार इती करनी करिकै कलि में कल कीरति लेतो॥