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हिंदी-साहित्य का इतिहास

बनाया जिसमें एक-एक पद के भीतर कई कई उदाहरण है। इनका क्रम औरों से विलक्षण है। ये पहले अनेक दोहों में बहुत से लक्षण कहते गए हैं फिर एक साथ सबके उदाहरण कवित्त आदि में देते गए हैं। कविता साधारणतः अच्छी है। एक दोहा देखिए––

तरुनि लसति प्रकार तें, मालनि लसति सुबास।
गोरस गोरस देत नहिं गोरस चहति हुलास॥

(४१) मनीरास मिश्र––ये कन्नौज निवासी इच्छाराम मिश्र के पुत्र थे। इन्होंने संवत् १८२९ से 'छंदछप्पनी' और 'आनंदमंगल' नाम की दो पुस्तके लिखीं। 'आनंदमंगल' भागवत दशम स्कंध का पद्य में अनुवाद हैं। 'छदंछप्पनी' छंदःशास्त्र का बड़ा ही अनूठा ग्रंथ है।

(४२) चंदन––ये नाहिल पुवायाँ (जिला शाहजहाँपुर) के रहने वाले बंदीजन थे और गौड़ राजा केसरीसिंह के पास रहा करते थे। इन्होंने 'शृंगारसागर', 'काव्याभरण', 'कल्लोलतरंगिणी' ये तीन रीतिग्रंथ लिखे। इनके निम्नलिखित ग्रंथ और है––

(१) केसरीप्रकाश, (२) चंदन-सतसई, (३) पथिकबोध, (४) नखशिख, (५) नाममाला (क प), (६) पत्रिका-बोध, (७) तत्वसंग्रह, (८) सीतवसंत (कहानी), (९) कृष्णकाव्य, (१०) प्राज्ञ-विलास।

ये एक अच्छे चलते कवि जान पड़ते हैं। इन्होंने 'काव्याभरण' संवत् १८४५ में लिखा। फुटकल रचना तो इनकी अच्छी है ही। सीतवसंत की कहानी भी इन्होंने प्रबंधकाव्य के रूप में लिखी है। सीतवसंत की रोचक कहानी इन प्रातों में बहुत प्रचलित है। उसमें विमाता के अत्याचार से पीडित सीतवसंत नामक दो राजकुमारों की बड़ी लम्बी कथा है। इनकी पुस्तकों की सूची देखने से यह धारण होती है कि इनकी दृष्टि रीतिग्रंथों तक ही बद्ध न रहकर साहित्य के और अंगों पर भी थी।

ये फारसी के भी अच्छे शायर थे और अपनी तखल्लुस 'संदल' रखते थे। इनका 'दीवाने सुंदल' कहीं कहीं मिलता है। इनका कविता-काल संवत् १८२० से १८५० तक माना जा सकता है। इनका एक सवैया नीचे दिया जाता है––