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हिंदी-साहित्य का इतिहास

काल संवत् १८४९ से १८८० तक माना जा सकता है। इनकी कविता के कुछ नमूने नीचे देखिए––

अलि टसे अधर सुगंध पाय आनन को,
कानन में ऐसे चारु चरन चलाए हैं।
फटि गई कंचुकी लगे तें कट कुंजन के,
वेनी बरहीन खोली, वार छवि छाए हैं॥
वेग तें गवन कोनो, धक धक होत सीनो,
ऊरव उसासैं तन सेट सरसाए हैं।
भली प्रीति पाली वनमाली के बुलावे को,
मेरे हेत्त आली बहुतेरे दुख पाए हैं॥


घर घर घाट घाट बाट बाट ठाट ठटे,
वेला औ कुवेला फिरैं चेला लिए आस पास।
कविन सों वाद करैं, भेद विन नाद करैं,
महा उनमाद करैं, वरम करम नास॥
बेनी कवि कहैं विभिचारिन को बादसाह,
अतन प्रकासत न सतन सरम तास।
ललना ललक, नैन मैन की झलक,
हँसि हेरत अलक रद खलक ललकदास॥


चींटी की चलावै को? मसा के मुख आपु जाय,
स्वास की पवन लागे कोसन भगत है।
ऐनक लगाए मरु मरु कै निहारे जात,
अनु परमानु की समानता खगत है॥
बेनी कवि कहै हाल कहाँ लौं बखान करौं,
मेरी जान ब्रह्म को विचारियो सुगत है।
ऐसे आम दीन्हे दयाराम मन मोद करि,
जाके आगे सरसों सुमेर सो लगत है॥