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हिंदी-साहित्य का इतिहास

एक्क ण किज्जइ मंत्र ण तंत । णिअ धरणी लइ केलि करंत ।
णिअ घर घरणी जाब ण मज्जइ । ताब किं पंचवर्ण बिहरिज्जइ ।
जिमि लोण बिलज्जइ पाण्डिएहि, तिमि घृरिणी लई चित्त ।
समरस जइ तखणे जइ पुषु ते सम नित्त ।।

वज्रयानियो की योग-तंत्र-साधना से सच्च तथा स्त्रियों का-विशेषतः डोमिनी, रजकी आदि का-अबाध सेवन एक आवश्यक अंग था । सिद्ध कण्हपा डोमिनी का आह्वान-गीत इस प्रकार गाते है-

नगर बाहिरै डोंबी तोहरि कुडिया छइ ।
छोइ जाई सो बार नाड़िया ।।

आलो डोंबि ! तोए सम करिब म साँग ।
निघिण कृण्ह कपाली जोइ लाग ।।
एक्क सो पदमा चौपहिं पाखुढी । तढ़ि चढि नाच डोंबी बापुडी ।।
हालो डोंबी! तो पुछमि सदभावे । अइससि जासि डॉबी काहरि नावे ।।
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गंगा जउँना माझे रे बहइ नाई ।
ताहि बुधिलि मातंगि पोइआ लीले पार करेइ ।
बाहतु डोंबी, बाहुलो डोबी बाट त भइल उछारा ।
सद्गुरु पाअ पए जाइव पुणु जिणउरा ।।
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काआ, नावड़ि खटि मन करिआल । सद्गुरु बअणे घर पतवाल ।
चीअ थिर करि गहु रे नाई ! अन्न उपाये पार ण जाई ।।

कापालिक जोगियो से बचे रहने का उपदेश घर में सास ननंद आदि देती ही रहती थी, पर वे आकर्षित होती ही थीं-जैसे कृष्ण की ओर गोपियों होती थी---

राग देस मोह लाइअ छार । परम मोख - लवए मुत्तिहार ।
मारिअ सासु नणंद घरे शाली। माअ मारिया, कण्ह, भइल कबाली ।।

थोड़ा घट के भीतर का विहार देखिए---

नाडि शक्ति दिअ थरिअ खदे । अनंह, डमरू बाजइ' बीर नादे ।
काण्ड कपाली जी पाठ अचारे । देह नअरी विहरइ एकारे ।।