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रीति-ग्रंथकार कवि

तीखे तेगवाही जे सिपाही चढै़ घोड़न पै,
स्याही चढ़ै अमित अरिंदन की ऐल पै।
कहै पदमाकर निसान चढै़ हाथिन पै,
धूरि धार चढ़ै पाकसासन के सैल पै॥
साजि चतुरंग चमू जग जीतिबे के हेतु,
हिम्मत बहादुर चढ़त फर फैल पै।
लाली चढै़ मुख पै, बहाली चढै़ बाहन पै,
काली चढै़ सिंह पै, कपाली चढ़ै बैल पै॥


ऐ ब्रजचंद गोविंद गोपाल! सुन्यों क्यों न एते कलाम किए मैं।
त्यों पदमाकर आनँद के नद हौ, नँदनंदन! जानि लिए मैं॥
माखन चोरी कै खोरिन ह्वै चले भाजि कछु भय मानि जिए मैं।
दूरि न दौरि दुरयो जौ चहौ तौ दुरौ किन मेरे अँधेरे हिए मैं?

(५५) ग्वाल कवि––ये मथुरा के रहने वाले बदीजन सेवाराम के पुत्र थे। ये ब्रजभाषा के अच्छे कवि हुए है। इनका कविताकाल संवत् १८७९ से संवत् १९१८ तक है। अपना पहला ग्रंथ 'यमुना लहरी' इन्होंने संवत् १८७९ में और अंतिम अर्थ 'भक्तभावन' संवत् १९१९ में बनाया। रीतिग्रंथ इन्होंने चार लिखे है––'रसिकानंद’ (अलंकार), 'रसरंग' (संवत् १९०४) कृष्णज को नखशिख (संवत् १८८४) और 'दूषण-दर्पण' (संवत् १८९१)। इनके अतिरिक्त इनके दो ग्रंथ और मिले है––हम्मीर हठ (संवत् १८८१) और गोपी पच्चीसी।

और भी दो ग्रंथ इनके लिखे कहे जाते है––'राधा माधव-मिलन' और 'राधा-अष्टक'। 'कविहृदय-विनोद' इनकी बहुत सी कविताओं का संग्रह है।

रीतिकाल की सनक इनमें इतनी अधिक थी कि इन्हें 'यमुना लहरी' नामक देवस्तुति में भी नवरस शौर् षट्ऋतु सुझाई पड़ी है। भाषा इनकी चलती और व्यवस्थित है। वाग्विदग्धता भी इनके अच्छी है। षट्ऋतुओं का वर्णन इन्होंने विस्तृत किया है, पर वही शृंगारी उद्दीपन के ढंग का। इनके कवित्त