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रीतिकाल के अन्य कवि

ब्रजवासीदास का ब्रजविलास, गोकुलनाथ आदि की, महाभारत, मधुसूदनदास का रामाश्वमेध, कृष्णदास की भाषा भागवत, नवलसिंहकृत भाषा सप्तशती, आल्हारामायण, आल्हाभारत, मूलढोंला तथा चंद्रशेखर का हम्मीर हठ, श्रीधर का जंगनाम, पद्मकार का रामरसायन, ये इस काल के मुख्य कथात्मक काव्य है। इनमें चद्रशेखर के हम्मीरहठ, लाल कवि के छत्रप्रकाश, जोधराज के हम्मीरासो, सूदन के सुजानचरित्र और गोकुलनाथ आदि के महाभारत में ही काव्योपयुक्त रसात्मकता भिन्न भिन्न परिमाण में पाई जाती है। 'हम्मीररासो' की रचना बहुत प्रशस्त हैं। 'रामाश्वमेध' की रचना भी साहित्यिक है। 'ब्रजविलास' में काव्य के गुण अल्प हैं पर उसका थोड़ा बहुत प्रचार कम पढ़े लिखे कृष्णभक्तों में हैं।

कथात्मक प्रबंधों से भिन्न एक और प्रकार की रचना भी बहुत देखने में आती है जिसे हम वर्णनात्मक प्रबंध कह सकते हैं। दानलीला, मानलीला,जलविहार, वनविहार, मृगया, झूला, होलीवर्णन, जन्मोत्सव वर्णन, मंगलवर्णन, रामकलेवा, इत्यादि इसी प्रकार की रचनाएँ है। बड़े बड़े प्रबंधकाव्यों के भीतर इस प्रकार के वर्णनात्मक प्रसंग रहा करते हैं। काव्य-पद्धति में जैसे शृंगाररस से 'नखशिख', 'षट्ऋतु' आदि लेकर स्वतंत्र पुस्तकें बनने लगी वैसे ही कथात्मक महाकाव्यो के अंग भी निकालकर अलग पुस्तके लिखी गई। इनमें बड़े विस्तार के साथ वस्तुवर्णन चलता है। कभी कभी तो इतने विस्तार के साथ कि परिमार्जित साहित्यिक रुचि के सर्वथा विरुद्ध हो जाता है। जहाँ कविजी अपने वस्तुपरिचय का भंडार खोलते है––जैसे बरात का वर्णन है तो घोड़े की सैकड़ों जातियों के नाम, वस्त्रों का प्रसंग आया तो पचीसों प्रकार के कपड़ों के नाम और भोजन की बात आई तो सैकड़ों मिठाइयों, पकवानों और मेवों के नाम––वहाँ तो अच्छे अच्छे धीरों का धैर्य छूट जाता है।

चौथा वर्ग नीति के फुटकल पद्य कहने वालो का है। इनको हम 'कवि' कहना ठीक नहीं समझते। इनके तथ्य-कथन के ढंग में कभी कभी वाग्वैद्य रहता है पर केवल वाग्वैदग्ध्य के द्वारा काव्य की सृष्टि नहीं हो सकती। यह ठीक है कि कही कहीं ऐसे पद्य भी नीति की पुस्तकों में आ जाते हैं, जिनमें कुछ