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रीति-ग्रंथकार कवि

बोलति वचन मृदु मधुर बनाय, उर
अंतर के भाव की गँभीरता जनाय कै।
बात सखी सुंदर गोबिंद की कहात तिन्हैं,
सुंदरि बिलोकै बंक भृकुटी नचाय कै॥

(३) लछिमन चंद्रिका––'रसिकगोविंदानंदघन' में आए लक्षणों का संक्षिप्त संग्रह जो संवत् १८८६ में लछिमन कान्यकुब्ज के अनुरोध से कवि ने किया था।

(४) अष्टदेशभाषा––इसमें ब्रज, खड़ी बोली, पंजाबी, पूरबी आदि आठ बोलियों में राधा-कृष्ण की शृंगारलीला कही गई हैं।

(५) पिंगल।

(६) समय प्रबंध––राधाकृष्ण की ऋतुचर्या ८५ पद्यों में वर्णित है।

(७) कलियुग रासो––इसमें १६ कवित्तों में कलिकाल की बुराइयों का वर्णन है। प्रत्येक कवित्त के अंत में "कीजिए सहाय जू कृपाल श्रीगोविंदराय, कठिन कराल कलिकाल चलि आयो हैं" यह पद आता है। निर्माणकाल संवत् १८६५ है।

(८) रसिक गोविंद––चंद्रालोक या भाषाभूषण के ढंग की अलंकार की एक छोटी पुस्तक जिसमें लक्षण और उदाहरण एक ही दोहे में है। रचनाकाल सं॰ १८९० हैं।

(९) युगलरस माधुरी––रोला छंद मे राधाकृष्ण बिहार और वृंदावन का बहुत ही सरस और मधुर भाषा में वर्णन है जिससे इनकी सुहृदयता और निपुणता पूरी पूरी टपकती है। कुछ पंक्तियाँ दी जाती हैं––

मुकलित पल्लव फूल सुंगध परागहि झारत।
जुग मुख निरखि बिपिन जनु राई लोन उतारत॥
फूल फलन के भार डार झुकि यों छबि छाजै।
मनु पसारि दइ भुजा देन फल पथिकन काजै॥
मधु मकरंद पराग-लुब्ध अलि मुदित मत्त मन।
बिरद पढ़त ऋतुराज नृपन के मनु बंदीजन॥


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