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हिंदी-साहित्य का इतिहास

चरण शेख का बनाया कहा जाता है––

प्रेमरंग-पगे जगमगे जगे जामिन के,
जोबन की जोति जगी जोर उमगत हैं।
मदन के माते मतवारे ऐसे घूमत हैं,
झूमत हैं झुकि झुकि झँपि उघरत हैं॥
आलम सो नवल निकाई इन नैनन की,
पाँखुरी पदुम पै भँवर थिरकते हैं।
चाहते हैं उड़िबे को, देखत मयंकमुख,
जानत हैं रैनि तातें ताहि में रहते हैं॥

आलम रीतिबद्ध रचना करनेवाले नहीं थे। ये प्रेमोन्मत्त कवि थे और अपनी तरंग के अनुसार रचना करते थे। इसीसे इनकी रचनाओं में हृदय-तत्त्व की प्रधानता है। "प्रेम की पीर" वा "इश्क का दर्द" इनके एक एक वाक्य में भरा पाया जाता है। उत्प्रेक्षाएँ भी इन्होंने बड़ी अनूठी और बहुत अधिक कहीं है। शब्दवैचित्र्य, अनुप्रास आदि की प्रवृत्ति इनमें विशेष रूप से कहीं नहीं पाई जाती। शृंगाररस की ऐसी उन्मादमयी उक्तियाँ इनकी रचना में मिलती हैं कि पढ़ने और सुननेवाले लीन हो जाते है। यह तन्मयता सच्ची उमंग में ही संभव है। रेखता या उर्दू भाषा में भी इन्होंने कवित्त कहे है। भाषा भी इस कवि की परिमार्जित और सुव्यवस्थित है पर उसमें कहीं कहीं "कीन, दीन, जौन" आदि अवधी या पूरबी हिंदी के प्रयोग भी मिलते है। कहीं-कहीं फारसी की शैली के रस-बाधक-भाव भी इनमें मिलते हैं। प्रेम की तन्मयता की दृष्टि से आलम की गणना 'रसखान' और 'घनानंद' की कोटि में होनी चाहिए। इनकी कविता के कुछ नमूने नीचे दिए जाते हैं––


जा थल कीने बिहार अनेकन ता थल काँकर बैठि चुन्यो करैं।
जा रसना सों करी बहु बातन ता रसना सों चरित्र गुन्यो करें॥
आलम जौन से कुजन में करी केलि तहाँ अब सीस धुन्यो करैं।
नैनन में जै सदा रहते तिनकी अब कान कहानी सुन्यौं करैं॥