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रीतिकाल के अन्य कवि

इत्यादि के अतिरिक्त इन्होंने 'जंगनामा' नामक एक ऐतिहासिक प्रबंध-काव्य लिखा जिसमें फर्रुखसियर और जहाँदारशाह के युद्ध का वर्णन है। यह ग्रंथ काशी नागरीप्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित हो चुका है। इस छोटी सी पुस्तक में सेना की चढ़ाई, साज समान आदि का कवित्त-सवैयो में अच्छा वर्णन है। इनका कविता-काल सं॰ १७६७ के आसपास माना जा सकता है। 'जंगनामा' का एक कवित्त नीचे दिया जाता है––

इत गलगाजि चट्यो फर्रुखसियरसाह,
उत मौनदीन की करी भट भरती।
तोप की डकारनि सों बीर हहकारनि सों,
धौंसे की धुकारनि धमकि उठी धरती॥
श्रीधर नबाब फरजदखाँ सुजंग जुरे,
जोगिनी अघाई जुग जुगन की बरती।
हहरयौ हरौल, भीर गोल पै परी ही, तून,
करतो हरौली तौ हरौली भीर परती॥

(९) लाल कवि––इनका नाम गोरेलाल पुरोहित था और ये मऊ (बुंदेलखंड) के रहने वाले थे। इन्होंने प्रसिद्ध महाराज छत्रसाल की आज्ञा से उनका जीवन-चरित चौपाइयों में बड़े ब्योरे के साथ वर्णन किया है। इस पुस्तक में छत्रसाल का संवत् १७६४ तक का ही वृत्तांत आया है, इससे अनुमान होता है कि या तो यह ग्रंथ अधूरा ही मिला है अथवा लाल कवि का परलोकवास छत्रसाल के पूर्व ही हो गया था। जो कुछ हो, इतिहास की दृष्टि से "छत्र-प्रकाश" बड़े महत्त्व की पुस्तक है। इसमें सब घटनाएँ सच्ची और सब व्योरे ठीक ठीक दिए गए हैं। इससे वर्णित घटनाएँ और संवत् आदि ऐतिहासिक खोज के अनुसार बिल्कुल ठीक हैं, यहाँ तक कि जिस युद्ध में छत्रसाल को भागना पड़ा है उसका भी स्पष्ट उल्लेख किया गया है। यह ग्रंथ नागरीप्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित हो चुका है।

ग्रंथ की रचना प्रौढ़ और काव्यगुण-युक्त है। वर्णन की विशदता के अतिरिक्त स्थान स्थान पर ओजस्वी भाषण हैं। लाल कवि में प्रबंधपटुता पूरी