पृष्ठ:हिंदी साहित्य का इतिहास-रामचंद्र शुक्ल.pdf/३७०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
३४५
रीतिकाल के अन्य कवि

बनाई पुस्तकों के नाम दिए जाते हैं जिनसे विदित होगा कि कितने विषयों पर इन्होंने लिखा है––

(१) अष्टयाम आह्निक (२) आंनद-रघुनंदन नाटक, (३) उत्तमकाव्य-प्रकाश, (४) गीता-रघुनंदन शतिका, (५) रामायण, (६) गीता-रघुनंदन प्रामाणिक, (७) सर्व संग्रह, (८) कबीर बीजक की टीका, (९) विनयपत्रिका की टीका, (१०) रामचंद्र की सवारी, (११) भजन, (१२) पदार्थ, (१३) धनुर्विद्या, (१४) आनन्द रामायण, (१५) परधर्म-निर्णय, (१६) शांति-शतक, (१७) वेदांत-पंचक शतिका, (१८) गीतावली पूर्वार्द्ध (१९) ध्रुवाष्टक, (२०) उत्तम नीतिचंद्रिका, (२१) अबोधनीति, (२२) पाखंड-खंडिनी, (२३) आदिमंगल, (२४) बसंत-चौंतीसी, (२५) चौरासी रमैनी, (२६) ककहरा, (२७) शब्द, (२८) विश्वभोजन-प्रसाद, (२९), ध्यानमंजरी, (३०) विश्वनाथ-प्रकाश, (३१) परमतत्त्व, (३२) संगीत रघुनंदन, इत्यादि।

यद्यपि ये रामोपासक थे पर कुलपरंपरा के अनुसार निर्गुण संत मत की बानी का भी आदर करते थे। कबीरदास के शिष्य धर्मदास का बाँधव नरेश के यहाँ जाकर उपदेश सुनाना परंपरा से प्रसिद्ध हैं। 'ककहरा', 'शब्द', 'रमैनी' आदि उसी प्रभाव के द्योतक हैं। पर इनकी साहित्यिक रचना प्रधानतः रामचरित-संबंधिनी है। कबीर-बीजक की टीका इन्होंने निर्गुण ब्रह्म के स्थान पर सगुण राम पर घटाई है। ब्रजभाषा में नाटक पहले पहल इन्हीं ने लिखा। इस दृष्टि से इनका "आनंद-रघुनंदन नाटक" विशेष महत्त्व की वस्तु है। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने इसे हिंदी का प्रथम नाटक माना है। यद्यपि इसमें पद्यों की प्रचुरता हैं पर संवाद सब ब्रजभाषा गद्य में हैं। अंकविधान और पात्रविधान भी है। हिंदी के प्रथम नाटककार के रूप में ये चिरस्मरणीय हैं।

इनकी कविता अधिकतर या तो वर्णनात्मक है अथवा उपदेशात्मक। भाषा स्पष्ट और परिमार्जित है। इनकी रचना के कुछ नमूने दिए जाते है–

भाइन भृत्यन बिष्णु सो, रैयत भानु सो, सत्रुन काल सो भावै।
शत्रु बली सों बचै करि बुद्धि औ अस्त्र सों धर्म की रीति चलावै॥