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हिंदी-साहित्य का इतिहास

एरे मुकुटवार चरवाहे! गाय हमारी लीजौ।
जाय न कहूँ तुरत की ब्यानी, सौंपि खरक कै दोजौ॥
होहु चरावनहार गाय के बाँधनहार छुरैया।
कलि दीजौ तुम आय दोहनी, पावै दूध लुरैया॥


कोऊ कहूँ आय बन-वीथिन या लीला लखि जैहै।
कहि कहि कुटिल कठिन कुटिलन सों सिगरे ब्रज बगरैहै॥
जो तुम्हरी इनकी ये बातैं सुनिहैं कीरति रानी।
तौ कैसे परिहै पाटे तें, घटिहै कुल को पानी॥

(१६) जनकराज-किशोरीशरण––ये अयोध्या के एक वैरागी थे और संवत् १७९७ में वर्तमान थे। इन्होंने भक्ति, ज्ञान और रामचरित-संबंधिनी बहुत सी कविता की है। कुछ ग्रंथ संस्कृत में भी लिखे हैं। हिंदी कविता साधारणतः अच्छी है। इनकी बनाई पुस्तकों के नाम ये है––

आंदोलरहस्य दीपिका, तुलसीदासचरित्र, विवेकसार चंद्रिका, सिद्धातचौंतीसी, बारहखड़ी, ललित-शृंगार-दीपक, कवितावली, जानकीसरणाभरण, सीताराम सिद्धांतमुक्तावली, अनन्य-तरंगिणी, रामरस तरंगिणी, आत्मसबंध-दर्पण, होलिकाविनोद-दीपिका, वेदांतसार, श्रुति दीपिका, रसदीपिका, दोहावली, रघुवर करुणाभरण।

उपर्युक्त सूची से प्रकट है कि इन्होंने राम-सीता के शृंगार, ऋतुविहार आदि के वर्णन में ही भाषा कविता की है। इनका एक पद्य नीचे दिया जाता है––

फूले कुसुम द्रुम विविध रंग सुगंध के चहुँ चाब।
गुंजत मधुप मधुमत्त नाना रंग रज अँग फाब॥
सीरो सुगंध सुमंद बात विनोद कत बहत।
परसत अनंग उदोत हिय अभिलाष कामिनि कंत॥

(१७) अलबेली अलि––ये विष्णुस्वामी संप्रदाय के महात्मा 'वंशीअलि' जी के शिष्य थे। इसके अतिरिक्त इनका और कोई वृत्त ज्ञात नहीं। अनुमान