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रीतिकाल के अन्य कवि

नखशिख, नामरत्नमाला (कोश) (सं॰ १८७०), सीताराम-गुणार्णव, अमरकोष भाषा (सं॰ १८७०), कविमुखमंडन।

चेतचंद्रिका अलंकार का ग्रंथ है जिसमें काशिराज की वंशावली भी दी हुई है। 'राधाकृष्ण-विलास' रस संबंधी ग्रंथ है और 'जगतविनोद' के बराबर है। 'सीताराम-गुणार्णव' अध्यात्मरामायण का अनुवाद है जिसमें पूरी रामकथा वर्णित है। 'कविमुखमडन' भी अलकार संबंधी ग्रंथ है। गोकुलनाथ का कविता काल संवत् १८४० से १८७० तक माना जा सकता है। ग्रंथों की सूची से हो स्पष्ट है कि ये कितने निपुण कवि थे। रीति और प्रबंध दोनों ओर इन्होंने प्रचुर रचना की है। इतने अधिक परिमाण में और इतने प्रकार की रचना वहीं कर सकता है जो पूर्ण साहित्यमर्मज्ञ, काव्यकला में सिद्धहस्त और भाषा पर पूर्ण अधिकार रखनेवाला हो। अतः महाभारत के तीनों अनुवादको में तो ये श्रेष्ठ हैं। ही, साहित्य क्षेत्र में भी ये बहुत ही ऊँचे-पद के अधिकारी हैं। रीतिग्रंथ-रचना और प्रबंध-रचना दोनों में समान रूप से कुशल और कोई दूसरा कवि रीतिकाल के भीतर नहीं पाया जाता।

महाभारत के जिस-जिस अंश का अनुवाद जिसने-जिसने किया है उस-उस अंश में उनका नाम दिया हुआ है। नीचे तीनों कवियों की रचना के कुछ उदाहरण दिए जाते है––

गोकुलनाथ––

सखिन के श्रुति में उकुति कल कोकिल की
गुरुजन हू पै पुनि लाज के कथान की।
गोकुल अरुन चरनांबुज पै गुंजपुंन
धुनि सी चढ़ति चंचरीक चरचान की॥
पीतम के श्रवन समीप ही जुगुति होति
मैन-मंत्र-तंत्र के बरन गुनगान की।
सौतिन के कानन में इलाहल ह्वै हलति,
एरी सुखदानि! तौ बजनि बिलुवान की॥

(राधाकृष्ण विलास)


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