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रीतिकाल के अन्य कवि

(२९) बोधा––ये राजापुर (जि॰ बाँदा) के रहनेवाले सरयूपारी ब्राह्मण थे। पन्ना दरबार में इनके संबंधियों की अच्छी प्रतिष्ठा थी। उसी संबंध से ये बाल्यकाल ही में पन्ना चले गए। इनका नाम बुद्धिसेन था, पर महाराज इन्हें प्यार से 'बोधा' कहने लगे और वही नाम इनका प्रसिद्ध हो गया। भाषाकाव्य के अतिरिक्त इन्हें संस्कृत और फारसी का भी अच्छा बोध था। शिवसिंहसरोज में इनका जन्म-संवत् १८०४ दिया हुआ है। इनका कविता-काल संवत् १८३० से १८६० तक माना जा सकता है।

बोधा एक बडे़ रसिक जीव थे। कहते हैं कि पन्ना दरबार में सुभान (सुबहान) नाम की एक वेश्या थी जिसपर इनका प्रेम हो गया। इसपर रुष्ट होकर महाराज ने इन्हें ६ महीने देश-निकाले का दंड दिया। सुभान के वियोग में ६ महीने इन्होंने बड़े कष्ट से बिताए और उसी बीच में "विरह-बारीश" नामक एक पुस्तक लिखकर तैयार की। ६ महीने पीछे जब ये फिर दरबार में लौटकर आए, तब अपने "विरह-बारीश" के कुछ कवित्त सुनाए। महाराज ने प्रसन्न होकर इनसे कुछ माँगने को कहा। इन्होंने कहा "सुभान अल्लाह"। महाराज ने प्रसन्न होकर सुभान को इन्हें दे दिया और इनकी मुराद पूरी हुई।

'विरह-बारीश' के अतिरिक्त "इश्कनामा" भी इनकी एक प्रसिद्ध पुस्तक है। इनके बहुत से फुटकल कवित्त सवैए इधर उधर पाएं जाते है। बोधा एक रसोन्मत्त कवि थे, इससे इन्होंने कोई रीतिग्रंर्थ न लिखकर अपनी मौज के अनुसार फुटकल पद्यों की ही रचना की है। ये अपने समय के एक प्रसिद्ध कवि थे। प्रेममार्ग के निरूपण में इन्होंने बहुत से पद्य कहे है। 'प्रेम की पीर' की व्यंजना भी इन्होंने बड़ी मर्मस्पर्शिनी युक्ति से की है। यत्र तत्र व्याकरण-दोष रहने पर भाषा इनकी चलती और मुहावरेदार होती थी। उससे प्रेम की उमंग छलकी पड़ती है। इनके स्वभाव में फक्कड़पन भी कम नहीं था। 'नेजे', 'कटारी' और 'कुरबान' वाली बाजारु ढंग की रचना भी इन्होंने कहीं कहीं की है। जो कुछ हो, ये भावुक और रसज्ञ कवि थे, इसमें कोई संदेह नही। कुछ पद्य इनके नीचे दिए जाते है––

अति खीन मृनाल के तारहु तें तेहि ऊपर पाँव दै आवनो है।
सुई-बेह कै द्वार सकै न तहाँ परतीति को ठाँडों लदावनो है॥