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रीतिकाल के अन्य कवि

नायक के प्रताप और पराक्रम की प्रशंसा द्वारा उससे भिड़नेवाले या उसे जीतनेवाले नायक के प्रताप और पराक्रम की व्यंजना की है। राम का प्रतिनायक रावण कैसा था? इंद्र, मरुत् , यम, सूर्य आदि सब देवताओं से सेवा लेनेवाला; पर हम्मीरहठ अलाउद्दीन एक चुहिया के कोने में दौड़ने से डर के मारे उछल भागता है और पुकार मचाता है।

चंद्रशेखरजी को साहित्यिक भाषा पर बड़ा भारी अधिकार था। अनुप्रास की योजना प्रचुर होने पर भी भद्दी कही नहीं हुई, सर्वत्र रस में सहायक ही है। युद्ध, मृगया आदि के वर्णन तथा संवाद आदि सत्र बड़ी मर्मज्ञता से रखे गए है। जिस रस का वर्णन है ठीक उसके अनुकूल पदविन्यास है। जहाँ शृंगार का प्रसंग है वहाँ यही प्रतीत है कि किसी सर्वश्रेष्ठ शृंगार कवि की रचना पढ़ रहे है। तात्पर्य यह है कि "हम्मीरहठ" हिंदी-साहित्य का एक रत्न है। "तिरिया तेल हम्मीर हठ चढैं न दूजी बार" वाक्य ऐसे ही ग्रंथ में शोभा देता हैं। नीचे कविता के कुछ नमूने दिए जाते है––

उवै भान पच्छिम प्रतच्छ, दिन चंद प्रकासै।
उलटि गंग बरु बहै, काम रति प्रीति बिनासै॥
तजै गौरि अरधंग, अचल ध्रुव आसन चल्लै।
अचल पवन बरु होय, मेरु मंदर गिरि हल्लै॥

सुरतरु सुखाय, लोमस मरै, मीर! संक सब परिहरौ।
मुखबचन बीर हम्मीर को बोलि न यह कबहूँ टरौ॥


आलम नेवाज सिरताज पातसाहन के
गाज ते दराज कोव नजर तिहारी है।
जाके डर डिगत अडोल गढ़धारी, डग-
मगत पहार और डुलति महि सारी है॥
रंक जैसो रहत संसकित सुरेस भयो,
देस देसपति में अतंक अति भारी है।