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रीतिकाल के अन्य कवि

इनका समय अधिकतर काव्य-चर्चा में ही जाता था। इनका परलोकवास संवत् १९१७ में हुआ।

भारतेंदु जी ने इनके लिखे ४० ग्रंथों का उल्लेख किया है जिनमे से बहुतों का पता नहीं है भारतेंदुजी के दौहित्र, हिंदी के उत्कृष्ट लेखक श्रीयुत बाबू ब्रजरत्नदासजी ने अपनी देखी हुई इन अठारह पुस्तको के नाम इस प्रकार दिए हैं––

जरासंधवध महाकाव्य, भारतीभूषण (अलंकार), भाषा-व्याकरण (पिंगल संबंधी), रसरत्नाकर, ग्रीष्म वर्णन, मत्स्यकथामृत, वाराहकथामृत, नृसिंहकथामृत, वामनकथामृत, परशुरामकथामृत, रामकथामृत, बलरामकथामृत, (कृष्णचरित ४७०१ पदों में), बुद्धकथामृत, कल्कि-कथामृत, नहुष नाटक, गर्गसंहिता (कृष्णचरित का दोहे चौपाई में बड़ा ग्रंथ), एकादशी माहात्म्य।

इनके अतिरिक्त भारतेंदू जी के एक नोट के आधार पर स्वर्गीय बाबू राधाकृष्णदास ने इन २१ और पुस्तकों का उल्लेख किया है––

वाल्मीकि रामायण (सातों कांड पद्यानुवाद), छंदोर्णव, नीति, अद्भुत रामायण, लक्ष्मीनखशिख, वार्तासंस्कृत, ककारादि सहस्रनाम, गयायात्रा, गयाष्टक, द्वादशदलकमल, कीर्तन, संकर्षणाष्टक दनुजारिस्तोत्र, शिवस्तोत्र, गोपालस्तोत्र, भगवतस्तोत्र, श्रीरामस्तोत्र, श्रीराधास्तोत्र, रामाष्टक, कालियकालाष्टक।

इन्होंने दो ढंग की रचनाएँ की हैं। गर्गसंहिता आदि भक्तिमार्ग की कथाएँ तो सरल और-साधारण पद्यों में कहीं है, पर काव्यकौशल की दृष्टिसे जो रचनाएँ की हैं––जैसे जरासंधवध, भारती-भूषण, रस-रत्नाकर, ग्रीष्मवर्णन––वे यमक और अनुप्रास आदि से इतनी लदी हुई है कि बहुत स्थलो पर दुरूह हो गई हैं। सबसे अधिक इन्होंने यमक और अनुप्रास की, चमत्कार दिखाया है। अनुप्रास और यमक का ऐसा विधान जैसा जरासंघवध में है और कहीं नहीं मिलेगा। जरासंधवध अपूर्ण है, केवल ११ सर्गों तक लिखा गया है, पर अपने ढंग का अनूठा है। जो कविताएँ देखी गई हैं उनसे यही धारणा होती है कि इनका झुकाव चमत्कार की ओर अधिक था। रसात्मकता इनकी रचनाओं में वैसी नहीं पाई जाती। २७ वर्ष की ही आयु पाकर इतनी अधिक पुस्तकें लिख