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हिंदी-साहित्य का इतिहास

डालना पद्यरचना का अद्भुत अभ्यास सूचित करता है। इनकी रचना के कुछ नमूने नीचे दिए जाते है।

(जरासंधवध से)

चल्यो दरद जेहि फरद रच्यो विधि मित्र-दरद-हर।
सरद सरोरुह बदन जाचकन-बरद मरद बर॥
लसत सिंह सम दुरद नरद दिसि-दुरद-अरद-कर।
निरखि होत अरि सरद, हरद सम जरद-कांति-धर॥

कर करद करत बेपरद जब गरद मिलत बपु गाज को!
रन-जुआ-नरद वित नृप लस्यो करद मगध-महराज को॥


सबके सब केशव के सबके हित के गज सोहते सोभा अपार हैं।
जब सैलन सैलन सैलन ही फिरैं सैलन सैलहि सीस प्रहार हैं॥
'गिरिधारन' धारन सों पदकंज लै धारन लै बसु धारन फार हैं।
अरि बारन बारन बारन पै सुर वारन वारन वारन वार हैं॥


(भारती-भूषण से)

असंगति––सिंधु-जनि गर हर पियो, मरे असुर समुदाय।
नैन-बान नैनन लग्यो, भयो करेजे घाय॥

(रसरत्नाकर से)

जाहिं विवाहि दियो पितु मातु नै पावक साखि सबै जग जानी।
साहब से 'गिरिधारन जू' भगवान् समान कहैं मुनि ज्ञानी॥
तू जो कहैं वह दच्छिन हैं, तो हमैं कहा बाम हैं, बाम अजानी।
भागन सों पति ऐसो मिलै, सबहींन को दच्छिन जो सुखदानी॥