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गद्य-साहित्य का आविर्भाव

के बीच शिक्षा-संबंधी अनेक पुस्तके हिंदी में निकलीं जिनमें से कुछ, का उल्लेख किया जाता है––

पं॰ वंशीधर ने, जो आगरा नार्मल स्कूल के मुदर्रिस थे, हिंदी-उर्दू का एक पत्र निकाला था जिसके हिंदी कालम का नाम "भारत खंडामृत" और उर्दू कालम का नाम "आबेहयात" था। उनकी लिखी पुस्तकों के नाम ये हैं––

(१) पुष्पवाटिका (गुलिस्ताँ के एक अंश का अनुवाद, सं॰ १९१९)
(२) भारतवर्षीय इतिहास (सं॰ १९१३)
(३) जीविका-परिपाटी (अर्थशास्त्र की पुस्तक, सं॰ १९१३)
(४) जगत् वृत्तांत (सं॰ १९१५)

पं॰ श्रीलाल ने संवत् १९०९ में 'पत्रमालिका' बनाई। गार्सा द तासी ने इन्हें कई एक पुस्तकों का लेखक कहा है।

बिहारीलाल ने गुलिस्ताँ के आठवें अध्याय का हिंदी-अनुवाद सं॰ १९१९ में किया।

पं॰ बद्रीलाल ने डाक्टर बैलटाइन के परामर्श के अनुसार सं॰ १९१९ में 'हितोपदेश' का अनुवाद किया जिसमें बहुत सी कथाएँ छाँट दी गई थीं। उसी वर्ष 'सिद्धात-संग्रह' (न्याय शास्त्र) और 'उपदेश पुष्पवती' नाम की दो और पुस्तकें निकली थीं।

यहाँ यह कह देना आवश्यक है कि प्रारंभ में राजा साहब ने जो पुस्तके लिखीं वे बहुत ही चलती सरल हिंदी में थीं; उनमे वह उर्दूपन नहीं भरा था जो उनकी पिछली किताबों (इतिहास-तिमिरनाशक आदि) में दिखाई पड़ता है। उदाहरण के लिये "राजा भोज का सपना" से कुछ अंश उद्धृत किया जाता है––

"वह कौन सा मनुष्य है जिसने महाप्रतापी महाराज भोज का नाम न सुना हो। उसकी महिमा और कीर्ति तो सारे जगत् में व्याप रही है। बड़े बड़े महिपाल उसका नाम सुनते ही काँप उठते और बड़े बड़े भूपति उसके पाँव पर अपना सिर नवाते। सेना उसकी समुद्र के तरगों का नमूना और खजाना उसका