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हिंदी-साहित्य का इतिहास

संवत् १९३४ तक कोई अच्छा और स्थायी साप्ताहिक पत्र नहीं निकला था। अतः संवत् १९३४ में पंडित दुर्गाप्रसाद मिश्र, पंडित छोटूलाल मिश्र, पंडित सदानंद मिश्र, बाबू जगन्नाथप्रसाद खन्ना के उद्योग से कलकत्ते में "भारतमित्र कमेटी" बनी और "भारतमित्र" पत्र बड़ी धूमधाम से निकला और बहुत दिनों तक हिंदी-सवादपत्रों में एक ऊँचा स्थान ग्रहण किए रहा। प्रारंभ काल में जब पंडित छोटूलाल मिश्र इसके संपादक थे तब भारतेंदुजी भी कभी-कभी इसमें लेख दिया करते थे।

उसी संवत् में लाहौर से "मित्र-विलास" नामक पत्र पंडित गोपीनाथ के उत्साह से निकला। इसके पहले पंजाब में कोई हिंदी का पत्र न था। केवल "ज्ञानप्रदायिनी" नाम की एक पत्रिका उर्दू-हिंदी में बाबू नवीनचंद्र द्वारा निकलती थी जिसमें शिक्षा और सुधार संबंधी लेखों के अतिरिक्त ब्राह्मोमत की बातें रहा करती थीं। उसके पीछे जो "हिंदु-बांधव" निकला उसमें भी उर्दू और हिंदी दोनों रहती थीं। केवल हिंदी का एक भी पत्र न था। 'कवि-वचनसुधा' की मनोहर लेखशैली और भाषा पर मुग्ध होकर, ही पंडित गोपीनाथ ने 'मित्र-विलास' निकाला था, जिसकी भाषा बहुत सुष्ठु और ओजस्विनी होती थी। भारतेंदु के गोलोकवास पर बड़ी ही मार्मिक भाषा में इस पत्र ने शोक-प्रकाश किया था और उनके नाम का संवत् चलाने का आंदोलन उठाया था।

इसके उपरांत संवत् १९३५ मैं पंडित दुर्गाप्रसाद मिश्र के संपादन में "उचितवक्ता” और पंडित सदानंद मिश्र के संपादन में "सारसुधानिधि" ये दो पत्र कलकत्ते से निकले। इन दोनों महाशयों ने बड़े समय पर हिंदी के एक बड़े अभाव की पूर्ति में योग दिया था। पीछे कालाकाँकर के मनस्वी और देशभक्त राजा रामपालसिंहजी अपनी मातृभाषा की सेवा के लिये खड़े हुए और संवत् १९४० में उन्होंने 'हिंदोस्थान' नामक पत्र इँगलैंड से निकाला जिसमें हिंदी और अँगरेजी दोनों रहती थीं। भारतेंदु के गोलोकवास के पीछे संवत्, १९४२ में यह हिंदी-दैनिक के रूप में निकला और बहुत दिनों तक चलता रहा। इसके संपादकों में देशपूज्य पंडित मदनमोहन मालवीय, पंडित प्रतापनारायण मिश्र, बाबू बालमुकुंद गुस ऐसे लोग रह चुके हैं। बाबू हरिश्चंद्र के जीवनकाल