पृष्ठ:हिंदी साहित्य का इतिहास-रामचंद्र शुक्ल.pdf/४८४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
४५९
सामान्य परिचय


में ही अर्थात् मार्च सन् १८८४ ई॰ में बाबू रामकृष्ण वर्म्मा ने काशी से "भारत जीवन" पत्र निकाला। इस पत्र का नामकरण भारतेंदुजी ने ही किया था।



भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म काशी के एक संपन्न वैश्य-कुल में भाद्र शुक्ल ५ संवत् १९०७ को और मृत्यु ३५ वर्ष की अवस्था में माघ कृष्ण ६ सं॰ १९४१ को हुई।"

संवत् १९२० में वे अपने परिवार के साथ जगन्नाथजी गए। उसी यात्रा में उनका परिचय बंग देश की नवीन साहित्यिक प्रगति से हुआ। उन्होंने बँगला में नए ढंग के समाजिक, देश-देशांतर-संबंधी, ऐतिहासिक और पौराणिक नाटक, उपन्यास आदि देखे और हिंदी में ऐसी पुस्तकों के अभाव का अनुभव किया। संवत् १९२५ में उन्होंने 'विद्यासुंदर नाटक' बँगला से अनुवाद करके प्रकाशित किया। इस अनुवाद में ही उन्होंने हिंदी-गद्य के बहुत ही सुडौल रूप का आभास दिया। इसी वर्ष उन्होंने "कविवचनसुधा" नाम की एक पत्रिका निकाली जिसमें पहले पुराने कवियों की कविताएँ छपा करती थीं पर पीछे गद्य लेख भी रहने लगे। संवत् १९३० में उन्होंने 'हरिश्चंद्र मैगजीन' नाम की एक मासिक पत्रिका निकाली जिसका नाम ८ संख्याओं के उपरात "हरिश्चंद्र-चंद्रिका" हो गया। हिंदीगद्य का ठीक परिष्कृत रूप पहले पहले इसी 'चंद्रिका' में प्रकट हुआ। जिस प्यारी हिंदी को देश ने अपनी विभूति समझा, जिसको जनता ने उत्कंठापूर्वक दौड़कर अपनाया, उसका दर्शन इसी पत्रिका में हुआ। भारतेंदु ने नई सुधरी हुई हिंदी का उदय इसी समय से माना है। उन्होंने 'कालचक्र' नाम की अपनी पुस्तक में नोट किया है कि "हिंदी नई चाल में ढली, सन् १८७३ ई॰"।

इस "हरिश्चंद्री हिंदी" के आविर्भाव के साथ ही नए नए लेखक भी तैयार होने लगे। 'चंद्रिका' में भारतेंदुजी आप तो लिखते ही थे, बहुत से और लेखक भी उन्होंने उत्साह दे-देकर तैयार कर लिए थे। स्वर्गीय पंडित बदरीनारायण चौधरी बाबू हरिश्चंद्र के संपादन-कौशल की बड़ी प्रशंसा किया करते थे। बड़ी तेजी के साथ वे चंद्रिका के लिये लेख और नोट लिखते