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सामान्य परिचय

अँगरेजी पढ़े-लिखे नवशिक्षित लोगो को हिंदी की ओर आकर्षित करने के लिये लिख रहे हैं। स्थान स्थान ब्रैकेट में घिरे "Education," "Society," "National vigour and strength," "Standard," "Character" इत्यादि अँगरेजी शब्द पाए जाते है। इसी प्रकार फारसी अरबी के लफ्ज ही नहीं बड़े-बड़े फिकरे तक भट्टजी अपनी मौज में आकर रखा करते थे। इस प्रकार उनकी शैली में एक निरालापन झलकता है। प्रतापनारायण के हास्यविनोद से भट्टज़ी के हास्यविनोद में यह विशेषता है कि वह कुछ चिड़चिड़ाहट लिए रहता था। पदविन्यास भी कभी-कभी उनका बहुत ही चोखा और अनूठा होता था।

अनेक प्रकार के 'गद्य-प्रबंध' भट्टजी ने लिखे हैं, पर सब छोटे छोटे। वे बराबर कहा करते थे कि न जाने, कैसे, लोग बड़े-बड़े लेख लिख डालते है। मुहावरों की सूझ उनकी बहुत अच्छी थी। "आंख", "कान", "नाक" आदि शीर्षक देकर उन्होंने कई लेखों में बड़े ढंग के साथ मुहावरों की झड़ी बाँध दी हैं। एक बार वे मेरे घर पधारे थे। मेरा छोटा भाई आँखों पर हाथ रखे उन्हें दिखाई पड़ा है।‌ उन्होंने पूछा "भैया! आँख में क्या हुआ है?" उत्तर मिला "आँख,आई है।" वे चट बोल उठे "भैया! यह आँख बड़ी बला है, इसका आना, जाना, उठना, बैठना सब बुरा है" अनेक विषयों पर गद्य-प्रबंध लिखने के अतिरिक्त "हिंदी-प्रदीप" द्वारा भट्टजी संस्कृत-साहित्य और संस्कृत के कवियों का परिचय भी अपने पाठकों को, समय समय पर कराते रहे। पंडित प्रतापनारायण मिश्र और पंडित बालकृष्ण भट्ट ने हिंदी गद्यसाहित्य में वही काम किया है जो अँगरेजी गद्य-साहित्य में एडीसन और स्टील ने किया था। भट्टजी की लिखावट के दो नमूने देखिए––

कल्पना

x x x यावत् मिथ्या और दरोग की किबलेगाह इस कल्पना पिशाचिनी का कहीं ओर छोर किसी ने पाया है? अनुमान करते करते हैरान गौतम से मुनि 'गोतम' हो गए। कणाद तिनका खा खाकर किनका बीनने लगे पर मैन की मनभावनी कन्या कल्पना को पार न पाया। कपिल बेचारे पचीस तत्वों