पृष्ठ:हिंदी साहित्य का इतिहास-रामचंद्र शुक्ल.pdf/४९५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
४७०
हिंदी-साहित्य का इतिहास

चलि जात यह अति ख्वारी" से अधिक काव्योचित और मार्मिक है।

'प्रयाग-रामबागमन' नाटक में राम का भरद्वाज आश्रम में पहुँचकर आतिथ्य ग्रहण है। इसमें सीता की भाषा ब्रज रखी गई है 'वारागना रहस्य महानाटक (अथवा वेश्याविनोद सहाफाटक)' दुर्व्यसन-ग्रस्त समाज का चित्र खींचने के लिये उन्होंने सं॰ १९४३ से ही उठाया और थोड़ा थोड़ा करके समय समय पर अपनी 'आनंद-कादंबिनी' में निकालते रहे, पर पूरा न कर सके। इसमें जगह जगह शृंगाररस के श्लोक, कवित्त-सवैये, गजल, शेर इत्यादि रखे गए हैं।

विनोदपूर्ण प्रहसन तो अनेक प्रकार के ये अपनी पत्रिका में बराबर निकालते रहे।

सच पूछिए तो "आनंद-कादंबिनी" प्रेमघनजी ने अपने ही उमड़ते हुए विचारों और भावों को अंकित करने के लिये निकाली थी। और लोगों के लेख इसमें नहीं के बराबर रहा करते थे। इस पर भारतेंदुजी ने उनसे एक बार कहा था कि "जनाब! यह किताब नहीं कि जो अप अकेले ही इरकाम फरमाया करते हैं, बल्कि अखबार है कि जिसमें अनेक जन लिखित लेख होना आवश्यक है; और यह भी जरूरत नहीं कि सब एक तरह के लिक्खाड़ हो।" अपनी पत्रिका में किस शैली की भाषा लेकर चौधरी साहब मैदान में आए इसे दिखाने के लिये हम उसके प्रारंभ काल (संवत् १९३८) की एक संख्या से कुछ अंश नीचे देते हैं––

परिपूर्ण पावस

जैसे किसी देशाधीश के प्राप्त होने से देश का रंग ढंग बदल जाता है तद्भूप पावस के आगमन से इस सारे संसार ने भी दूसरा रंग पकड़ा, भूमि हरी-भरी होकर नाना प्रकार की वासों से सुशोभित भई, मानों मारे मोद के रोमांच की। अवस्था को प्राप्त भई। सुंदर हरित पत्रावलियों से भरित तरुगनों की सुहावनी लताएँ लिपट लिपट मानो मुग्ध मयकमुखियों को अपने प्रियतम के अनुरागालिंगन की विधि बतलातीं। इनसे युक्त पर्वत के शृंगों के नीचे सुंदरी-दरी-समूह से स्वच्छ श्वेत जल-प्रवाह ने मानो पारा की धारा और बिल्लौर की ढार को तुच्छ कर युरोल पार्श्व की हरी-भरी भूमि के, कि जो