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सामान्य परिचय

और लेखकों की दृष्टि और हृदय की पहुँच मानव-क्षेत्र तक ही थी, प्रकृति के ऊपर क्षेत्रों तक नहीं। पर ठाकुर जगमोहनसिंहजी ने नरक्षेत्र के सौंदर्य को प्रकृति के और क्षेत्रों के सौंदर्य के मेल में देखा है। प्राचीन संस्कृत साहित्य के रुचि-संस्कार के साथ भारतभूमि की प्यारी रूप रेखा को मन में बसानेवाले पहले हिदी लेखक थे, यहाँ पर बस इतना ही कहकर हम उनके "श्यामास्वप्न" का एक दृश्य-खंड नीचे देते हैं––

"नर्मदा के दक्षिण दंडकारण्य का एक देश दक्षिण कोशल नाम से प्रसिद्ध है––

याही मग है, कै गए दंढकवन श्री राम।
तासों पावन देस वह विंध्याटवी ललाम॥

मैं कहाँ तक इस सुंदर देश का वर्णन करूँ?... ... जहाँ की निर्झरिणी––जिनके तीर वानीर से भिरे, मदकल-कूंजित विहंगमों से शोभित हैं, जिनके मूल से स्वच्छ और शीतल जलधारा बहती है और जिनके किनारे के श्याम जबू के निकुंज फलभार से नमित जनाते हैं––शब्दायमान होकर झरती है। × × × जहाँ के शल्लकी-वृक्षों की छाल, में हाथी अपना बदन रगड़ रगड़ खुजली मिटाते हैं और उनमें से निकला क्षीर सब वन के शीतल समीर को सुरभित करता है। मंजु वंजुलकी लता और नील निचुल के निकुंज जिनके पत्ते ऐसे सघन जो सूर्य की किरनो की भी नहीं निकलने देते, इस नदी के तट पर शोभित हैं।

ऐसे दंडकारण्य के प्रदेश में भगवती चित्रोत्पला जो नीलोत्पलो की झाड़ियों और मनोहर पहाड़ियों के बीच होकर बहती है, ककगृद्ध नामक पर्वत से निकले अनेक दुर्गम विषम और असम भूमि के ऊपर से, बहुत से, तीर्थों और नगरों को अपने पुण्य-जल से पावन करती, पूर्व समुद्र में गिरती है।

इस नदी के तीर अनेक जगली गाँव बसे हैं। मेरा ग्राम इन सभी से उत्कृष्ट और शिष्ट जनों से पूरित है। इसके नाम ही को सुनकर तुम जानोगे कि यह कैसा सुंदर ग्राम है। × × × × इस पावन अभिराम ग्राम का नाम श्यामापुर है। यहाँ आम के आराम पथिके और पवित्र यात्रियों को विश्राम और आराम देते हैं। × × × × पुराने टूटे-फूटे देवाले इस ग्राम की प्राचीनता के साक्षी हैं। ग्राम के सीमात के झाड, जहाँ झुंड के झुंड कौवै और बगुले बसेरा लेते हैं, गवँई की शोभा बताते हैं। पौ फटते